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रविवार, 6 दिसंबर 2009

ज्ञानपीठ समाचार

ज्ञानपीठ समाचार का नया अंक मिला है। यह भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन के विक्रय विभाग का मासिक बुलेटिन है। भारतीय साहित्य में हो रही गतिविधियों एवं भारतीय ज्ञानपीठ के नए-पुराने प्रकाशनों की जानकारी व समीक्षा के लिए यह एक उपयोगी बुलेटिन है। बुलेटिन में कुछ किताबों के महत्वपूर्ण अंश व 'ज्ञानोदय' के आगामी विशेषांकों की जानकारी दी गयी है। बुलेटिन का सालाना शुल्क मात्र दस रूपए है।

विश्वास की स्याही...

ग्वालियर शहर में रहते हुए डॉ. आशीष द्विवेदी ने पत्रकारिता शिक्षण में खासा योगदान दिया है। इन दिनों डॉ. द्विवेदी सागर में पत्रकारिता का एक संस्थान इंक मीडिया स्कूल ऑफ़ जर्नलिज्म के नाम से चला रहे हैं। इंक मीडिया स्कूल ऑफ़ जर्नलिज्म के विद्यार्थियों का प्रायोगिक पत्र इंक टाइम्स के नाम से प्रकाशित हो रहा है। हाल ही में मिले इस के अंक को देखकर पत्रकारिता शिक्षण का महत्व व व्यावहारिक ज्ञान की महत्ता को समझा जा सकता है। इंक टाइम्स का आदर्श वाक्य " विश्वास की स्याही..." है। अंक में फीचर आधारित समाचारों को विशेषरूप से शामिल किया गया है कुछ प्रमुख और आम हस्तियों के साक्षात्कार व समसामयिक विषयों पर लेख और समाचारों को स्थान दिया गया है। यदि मुद्रण की गुणवत्ता व कुछ अन्य त्रुटियों को नज़रअंदाज़ कर देखा जाए तो इंक टाइम्स प्रायोगिक पत्र के रूप में संस्थान का एक उल्लेखनीय व व्यावहारिक प्रयास है मिथलेश साहू, बसंत शर्मा, धर्मेन्द्र दुबे व रेशु जैन की स्टोरी पठनीय और मानकों के अनुरूप हैं। बधाई

शनिवार, 5 दिसंबर 2009

मीडिया मूल्यों पर निगरानी

कमल दीक्षित का नाम देश के गिनेचुने फीचर विशेषज्ञों में शुमार किया जाता है। पत्रकारिता और पत्रकारिता शिक्षण से लेकर पत्रकारिता को धर्म बनाने व उसके मूल्यों की रक्षा के लिए श्री दीक्षित ने कई ऐसे प्रयास किये हैं जो मील का पत्थर साबित हुए हैं। सोसायटी ऑफ़ मीडिया इनिसिएटिव फॉर वेल्यूज़ द्वारा प्रकाशित " मुल्यानुगत मीडिया " का नया अंक हाल ही में मुझे प्राप्त हुआ है " मुल्यानुगत मीडिया " पत्रिका व न्यूज़ लेटर के बीच का प्रकाशन है। सोलह प्रष्ठीय इस प्रकाशन में मीडिया क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों के साथ - साथ कुछ मीडिया कर्मियों के अनुभव व साक्षात्कार भी शामिल हैं। श्री दीक्षित नें सम्पादकीय में जिला स्तर पर पत्रकारिता का स्वरुप सुधारने व उसके मूल्यों को संरक्षित करने के लिए पत्रकारिता प्रशिक्षण पर जोर दिया है वे लिखते हैं " बदली परिस्थितियों में सत्ता का केंद्र राज्य की राजधानी के साथ ही जिला भी बन चुका है " यह वाक्य आंचलिक पत्रकारिता के स्वर्णिम व चुनौती भरे भविष्य की ओर इंगित करता है। मुल्यानुगत मीडिया को www.mediainitiative.org पर भी पढ़ा जा सकता है कुल मिला कर मीडिया मूल्यों को बचाए रखने का यह एक अमूल्य ओर श्लाघनीय प्रयास है ।

शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

आगे बढ़ मर्दाना लिख

हमारे एक अज़ीज हैं शिवप्रताप सिंह जी, पत्रकारिता के साथ-साथ साहित्य (पढने और लिखने) में भी ख़ासा दख़ल रखते हैं आज उनसे बात हो रही थी मैंने इन दिनों अपने उदास रहने का जिक्र उनसे किया। उन्होंने अपनी एक रचना सुनते हुए मेरे हौसले को बढ़ाया । शिव ने यह रचना नवम्बर 2005 में लिखी थी अपनीबात के पाठकों की नज़र कर रहा हूँ । यह कहते हुए कि आगे बढ़ मर्दाना लिख अगर पसंद आये तो शिव को 09425127676 पर एक एसएमएस कर सीधे बधाई भी दे सकते हैं ।

आगे बढ़ मर्दाना लिख

आज प्यार का तराना लिख

खुद को तू दीवाना लिख

बिगड़ी लगे हवा शहर की

इंसानियत मरजाना लिख

घरोंदे पर भी नज़र रहे गर

चिड़िया का आना- जाना लिख

हिम्मत दिखाए गर कोई हसीना

आगे बढ़ मर्दाना लिख ...!

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

एक प्यार ही तो



बड़ी छोटी उम्र में सौंदर्यबोध हो गया था। कोर्स के अलावा सबकुछ पढने -लिखने का शगल था। बीए कर रहा था उन्ही दिनों हिन्दुस्तान पटना (2 जनवरी 1997) के अंक में रमेश ऋतंभरा की कविता पढ़ी । मन को छूने वाली थी। कविता यहाँ प्रस्तुत है -


एक प्यार ही तो


एक दिन में पुरानी पढ़ जाती है दुनिया


एक दिन में उतर जाता है रंग


एक दिन में मुरझा जाते हैं फूल


एक दिन में भूल जाता है दुःख


बस ,


एक प्यार ही तो है


जो रह जाता है बरसों - बरस याद दोस्तों

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

झारखरिया बने विशेष संवाददाता

दैनिक भास्कर ग्वालियर ने अपने ग्वालियर संस्करण में चार पदोन्नतियां की हैं. भास्कर ग्वालियर को लम्बे समय से बतौर चीफ रिपोर्टर अपनी सेवाएं दे रहे रवींद्र झारखरिया को विशेष संवाददाता बनाया गया है. वहीं दिनेश गुप्ता को चीफ रिपोर्टर और प्रवीण चतुर्वेदी एवं राजेश दुबे को डिप्टी चीफ रिपोर्टर बनाया गया है . सभी को बधाई

सोमवार, 28 सितंबर 2009

अहम पर स्वयं (संयम) की जीत के पर्व दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें.

गुरुवार, 2 जुलाई 2009

एक ग्रीन लाइट के इंतज़ार में

-शिरीष खरे
मुंबई के फ़ुटपाथों पर न जाने कितनी बार रेड लाइट ग्रीन लाइट में बदलती है, और ग्रीन लाइट , रेड लाइट में.... लेकिन इन ट्रैफिक लाइट के नीचे अपनी ज़िन्दगी गुजर रहे लाखों बच्चों और महिलाओं को आज भी अपनी जिंदगी में एक ग्रीन लाइट होने का इंतज़ार है... "मेरी जैसी कई औरतों को अपना शरीर बार-बार बेचना पड़ता है।" एक औरत की जुबान से पहली बार ऐसा सुनकर मैं झिझक गया। सपना ने बेझिझक आगे कहा- ‘‘पेट के लिए करना पड़ता है। ईज्जत के लिए घर में बैठ सकती हूं। लेकिन...’’ इसके बाद वह चुपचाप एक गली में गई और गुम हो गई.
देश के कोने-कोने से हजारों मजदूर सपनों के शहर मुंबई आते हैं. लेकिन उनके संघर्ष का सफर जारी रहता है. इनमें से ज्यादातर मजदूर असंगठित क्षेत्र से होते हैं. सुबह-सुबह शहर के नाकों पर मजदूर औरतें भी बड़ी संख्या दिखाई देती हैं. इनमें से कईयों को काम नहीं मिलता. इसलिए कईयों को 'सपना' बनना पड़ता है. तो क्या "पलायन" का यह रास्ता "बेकारी" से होते हुए "देह-व्यापार" को जाता है ?
शहर के उत्तरी तरफ, संजय गांधी नेशनल पार्क के पास दिहाड़ी मजदूरों की बस्ती है. यहां के परिवार स्थायी घर, भोजन, पीने लायक पानी और शिक्षा के लिए जूझ रहे हैं. लेकिन विकास योजनाओं की हवाएं यहां से होकर नहीं गुजरतीं. इन्होंने अपनी मेहनत से कई आकाश चूमती ईमारतों को बनाया है. खास तौर से नवी मुंबई की तरक्की के लिए कम अवधि के ठेकों पर अंगूठा लगाया है. इन्होंने यहां की कई गिरती ईमारतों को दोबारा खड़ा किया है.
यहां आमतौर पर औरत को 1,00 रूपए और मर्द को 1,30 रूपए/दिन के हिसाब से मजदूरी मिलती है. ठेकेदार और मजदूरों के आपसी रिश्तों से भी मजदूरी तय होती है. एक मजदूर को कम से कम 2,000 रूपए/महीने की जरूरत पड़ती है. मतलब उसका 1 दिन का खर्च 66 रूपए हुआ. इतनी आमदनी पाने के लिए परिवार की औरत भी मजदूरी को जाती है. उसे महीने में कम से कम 20 दिन काम चाहिए. लेकिन 10 दिन ही काम मिलता है. इस तरह एक औरत के लिए 1,000 रूपए/महीना कमाना मुश्किल होता है.
यह मलाड नाके का दृश्य है. थोड़ी रात, थोड़ी सुबह का समय है. सड़क के कोने और मेडीकल के ठीक सामने मजदूरों के दर्जनों समूह हैं. यहां औरत-मर्द एक-दूसरे के आजू-बाजू बैठकर बतियाते हैं. यह काम पाने की सूचनाओं का अहम अड्डा है. यहां सुबह 11 बजे तक भीड़ रहती है. उसके बाद मजदूर काम पर जाते हैं, जिन्हें काम नहीं मिलता वह घर लौटते आते हैं. लेकिन सेवंती खाली नहीं लौट सकती. इसलिए उसकी सुबह, रात में बदल जाती है. उसे नाके से जुड़ी दूसरी गलियों में पहुंचकर देह के ग्राहक ढ़ूढ़ने होते हैं.
आज रविवार होने के बावजूद उसे 3 घण्टे से कोई खरीददार नहीं मिल रहा है. इस व्यापार में दलाल कुल कमाई का बड़ा हिस्सा निगल जाते हैं. इसलिए सेवंती दलाल की मदद नहीं चाहती. सेवंती जैसी दूसरी औरतों को भी ग्राहक के एक इशारे का इंतजार है. इनकी उम्र 14 से 45 साल है. यह 80 से 1,50 रूपए में सौदा पक्का कर सकती हैं. अगले 24 घण्टों में 4 ग्राहक भी मिल गए तो बहुत हैं. यह अपने ग्राहकों से दोहरे अर्थो वाली भाषा में बात करती हैं. ऐसा पुलिस और रहवासियों से बचने के लिए किया जाता है. यह अपने असली नाम छिपा लेती हैं. इन्हें यहां सुरक्षा का एहसास नहीं है. इन्हें शारारिक और मानसिक यातनाओं का डर भी सता रहा है. यहां से कोई गर्भवती तो कोई गंभीर बीमारी की शिकार बन सकती है.
देह-व्यापार से जुड़ी तारा ने बताया- ‘‘यहां 100 में से करीब 70 औरतों की उम्र 30 साल से कम ही है. इसमें से भी करीब 25 औरतें मुश्किल से 18 साल की हैं. अब कम उम्र के लड़कियों की संख्या बढ़ रही है. 35 साल तक आते-आते औरत की आमदनी कम होने लगती है. एक औरत अपने को 20 साल से ज्यादा नहीं बेच सकती. आधे से ज्यादा औरतें पैसों की कमी के कारण यह पेशा अपनाती हैं. कुछेक औरतों पर दबाव रहता है.’’ पीछे खड़ी कुसुम ने कहा-‘‘मुझे तो बच्चे और घर-बार भी संभालना होता है. मेरे सिर पर तो दबाव के ऊपर दबाव है.’’ यहां ज्यादातर औरतों की यही परेशानी है.
माधुरी का पिता उसे मजदूरी के लिए भेजता है. लेकिन वह मजदूरी के साथ अपने शरीर से भी पैसा कमा लेती है. गिरिजा अपने भाई की बेकारी के दिनों का एकमात्र सहारा है. सुब्बा ने पति के एक्सीटेंट के बाद गृहस्थी का बोझ संभाल लिया है. जोया ने छोटी बहिन की शादी के लिए थोड़ा-थोड़ा पैसा बचाना शुरू कर दिया है. लेकिन उसकी बहिन पढ़ाई के लिए अब मुंबई आना चाहती है. जोया अपनी सच्चाई छिपाना चाहती है. उसे अपनी ईज्जत के तार-तार होने की आशंका है. नगमा 45 साल के पार हो चुकी है, अब उसकी 14 साल की बेटी बड़की कमाती है. बड़की बाल यौन-शोषण का जीता जागता रुप है.
यहां कदम-कदम पर कई बड़कियां खड़ी हैं. यह चोरी-छिपे इस कारोबार में लगी हैं इसलिए कुल बड़कियों का असली आकड़ा कोई नहीं जानता. कोई बंगाल से है, कोई आंध्रप्रदेश से है तो कोई महाराष्ट्र से. लेकिन इनके दुख और दुविधाओं में ज्यादा फर्क नहीं है. इन्होंने अपनी चिंताओं को मेकअप की गहरी परतों से ढ़क लिया है.
मोनी ने बताया- ‘‘इस पेशे से हमारा शरीर जुड़ता है, मन नहीं. हम पैसों के लिए अलग-अलग मर्दो को अपना शरीर बेचते हैं. लेकिन कई मर्द ऐसे भी हैं जो जिस्मफरोशी के लिए बार-बार ठिकाने बदलते हैं. अगर हमें गलत समझा जाता है तो उन्हें क्यों नही ?’’मोनी का सवाल देह-व्यापार के सभी पहलुओं पर शिनाख्त करने की मांग करता है.
यह एक अहम मुद्दा है. लेकिन इसे समाज की तरह सरकार ने भी अनदेखा किया हुआ है. इसे नैतिकता, अपराध या स्वास्थ्य के दायरों से बाँध दिया गया है. देखा जाए तो देह-व्यापार का ताल्लुक गरीबी, बेकारी और पलायन जैसी उलझनों से है. लेकिन इन उलझनों के आपसी जुड़ावों की तरफ ध्यान नहीं जाता. जबकि ऐसे आपसी जुड़ावों को एक साथ ढ़ूढ़ने और सुलझाने की जरूरत है.
भारत में देह-व्यापार की रोकथाम के लिए ‘भारतीय दण्डविधान, 1860’ से लेकर ‘वेश्यावत्ति उन्मूलन विधेयक, 1956’ बनाये गए. फिलहाल कानून के फेरबदल पर भी विचार चल रहा है. लेकिन इस स्थिति की जड़े तो समाज की भीतरी परतों में छिपी हैं. इसकी रोकथाम तो समाज के गतिरोधों को हटाने से होगी. इस व्यापार से जुड़ी औरतें दो जून की रोटी के लिए लड़ रही हैं. इसलिए विकास नीति में लोगों के जीवन-स्तर को उठाने की बजाय उन्हें जीने के मौके देने होंगे. देह-व्यापार के गणित को हल करने के लिए उन्हें अपनी जगहों पर ही काम देने का फार्मूला ईजाद करना होगा.
सरकार ने पलायन को रोकने के लिए 2005 को ‘राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना’ चलाई. इसके जरिए साल में 100 दिनों के लिए ‘‘हर हाथ को काम और पूरा दाम’’ का नारा दिया गया. लेकिन इस योजना में फरवरी 2006 से मार्च 2007 के बीच औसतन 18 दिनों का ही काम मिला. साल 2006-07 में 8,823 करोड़, 2007-08 में 15,857 करोड़ और 2008-09 में 17,076 करोड़ रूपए खर्च हुए. मतलब एक जिले में औसतन 30 करोड़ रूपए. इसका भी एक बड़ा भाग भष्ट्राचार में स्वाहा हो गया. कुल मिलाकर मजदूरों को 30-40 दिनों का ही काम मिल पाता है. इसलिए 365 दिनों के काम की तलाश में मजदूरों का पलायन जारी है. दूरदर्शन के प्रोग्राम के बीच 'रुकावट के लिए खेद' जैसा संदेश चर्चा का विषय रहा है. ‘‘हर हाथ को काम और पूरा दाम’’ के नारे के आगे अब यही संदेश लगा देना चाहिए.
पलायन की रफ़्तार के मुताबिक शहर का देह-व्यापार भी तेजी से फल-फूल रहा है। बात चाहे आजादी के पहले की हो या बाद की. अब यह किस्सा चाहे कलकत्ता का हो या मुंबई का. मुंबई में ही सड़क चाहे ग्राण्ट रोड की हो या मीरा रोड की. उस चैराहे पर मूर्ति चाहे अंबेडकर की लगी हो या मदर टेरेसा की. बस्ती चाहे कमाठीपुरा की हो या मदनपुरा की. यहां आपको रूकमणी (हिन्दू) भी मिलेगी और रूहाना (मुसलमान) भी. लेकिन जिन्हें अपने धर्म, क्षेत्र, जुबान या जाति पर नाज है, वह कहीं नहीं दिखते. यहां के रेड सिग्नलों पर रूकी औरतों की जिंदगी बदलाव चाहती है. तशकरी के तारों से जुड़ने के पहले, उन्हें एक ग्रीन सिग्नल का इंतजार है.
(स्टोरी में देह-व्यापार के लिए मजबूर औरतों की पहचान छिपाने के लिए उनके नाम बदल दिये गए हैं)
शिरीष खरे बच्चों के लिए कार्यरत संस्था CRY ‘चाईल्ड राईट्स एण्ड यू’ के ‘संचार विभाग’ से जुड़े हैं और दोस्त ब्लॉग के संचालक हैं।

मंगलवार, 23 जून 2009

पत्रकार व्याख्याताओं की आवश्यकता है

देश के प्रतिष्ठित शारीरिक शिक्षा विवि लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा विवि, ग्वालियर के खेल प्रबंधन एवं खेल पत्रकारिता विभाग में व्याख्याताओं की आवश्यकता है. पत्रकारिता शिक्षा से जुड़े लोग इन पदों हेतु साक्षात्कार दे सकते हैं. साक्षात्कार का आयोजन दिनांक 30 जून को विवि परिसर में प्रातः 10 बजे से किया जायेगा. अनुबंध आधारित इन पदों के लिए प्रतिमाह रूपए 10,000 (दस हज़ार) मानदेय निर्धारित किया गया है. अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें. अथवा विवि के फ़ोन न. -0751-4000963 पर संपर्क करें.

रविवार, 14 जून 2009

बहन जी बनाम दलित मसीहा

गत लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ-साथ अडवाणी के पी।एम. बनने के सपने पर भी पानी फिर गया. भाजपा अपनी इस पराजय को लेकर अंदरूनी क्लेश से गुजर रही है. उमा भारती का प्रसंग (राजनीति) तो विधानसभा चुनाव में ही ख़तम हो गयी थी। बहन जी यानी उप्र की सीएम मायावती का पीएम बनने का सपना भी चकनाचूर हो गया. पीएम बनने के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने क्या-क्या नहीं किया ? कहीं ब्राम्हण सम्मलेन का आयोजन तो कहीं ...! बाबा साहब अम्बेडकर और कांसीराम की प्रतिमा के साथ अपनी आदम कद प्रतिमा लगवाकर बहन जी ने स्वयं को दलितों का मसीहा वाली श्रेणी में शामिल करने का कथित प्रयास किया है. अब बहन जी और उनकी पार्टी " खिसियानी बिल्ली ...!" वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को "नाटकबाज" कह कर वे स्वयं दलितों की मसीहा बनने के नौटंकी भरे कृत्यों और बयानबाजी पर उतर आयीं हैं.
समय - समय पर बहन जी द्वारा दिए जाने वाले बयान एक तरफ जहाँ उनकी सत्ता लोलुपता को ज़ाहिर करते हैं। दूसरी ओर वोट बैंक बचाए रखने की मंशा के भी परिचायक हैं . इस तरह के कृत्य और बयान समाज में जातीय विभाजन और द्वेष भावना के अतिरिक्त कोई काम नहीं कर सकते. अगर "बहन जी" ने अपना रवैया नहीं बदला तो उनका राजनीतिक भविष्य भी "दीदी" की तरह हो जायेगा।
चलते - चलते- मुफ्त की एक सलाह - बहन जी ! आप उप्र के किसी शांत और रमणीय स्थल से महापौर का चुनाव लड़िये संभवतः आपकी विजय होगी.और शुकून भरा जीवन व्यतीत करियेगा.

बुधवार, 10 जून 2009

किताबें कुछ कहना चाहती हैं

सब की ज़िन्दगी से किताबों का अन्योन्याश्रित नाता है. किताबों में हमारे ख़्वाब भी रहते हैं और कुछ सूखे हुए गुलाब भी, और बहुत कुछ जिसे आसानी से नहीं कहा जा सकता. सफ़दर हाश्मी साहब की ये कविता आप तक पंहुचा रहा हूँ. किताबें और क्या - क्या कहना चाहतीं हैं समझने की कोशिश कीजिए.
किताबें
करती हैं बातें
बीते ज़मानों की
दुनिया की, इंसानों की
आज की, कल की
एक एक पल की
खुशियों की, ग़मों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की
क्या तुम नहीं सुनोगे
किताबों की बातें ?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं
किताबों में चिडियां चहचहाती हैं
किताबों में खेतियां लहलहाती हैं
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं
किताबों में रोकिट का राज़ है
किताबों में साइंस की आवाज़ है
किताबों का कितना बड़ा संसार है
किताबों में ज्ञान की भरमार है
क्या तुम इस संसार में
नहीं जाना चाहोगे ?
किताबें कुछ कहना चाहतीं हैं
तुम्हारे पास रहना चाहतीं हैं

गुरुवार, 4 जून 2009

चंदू मैंने सपना देखा

क्रांतिकारी चेतना के कवि बाबा नागार्जुन की कवितायेँ एक ओर जहाँ सहजभाव की द्योतक हैं वहीं आम आदमी की पीड़ा का प्रतिनिधित्त्व भी करती हैं। प्रस्तुत है बाबा की एक चर्चित कविता "चंदू मैंने सपना देखा"

चंदू मैंने सपना देखा, उछल रहे तुम ज्यों हिरनौटा


चंदू मैंने सपना देखा, अमुआ से हूँ पटना लौटा


चंदू मैंने सपना देखा, तुम्हें खोजते बद्री बाबू


चंदू मैंने सपना देखा, खेल कूद में हो बेकाबू


चंदू मैंने सपना देखा, कल परसों ही छूट रहे हो


चंदू मैंने सपना देखा, खूब पतंगें लूट रहे हो


चंदू मैंने सपना देखा, लाये हो तुम नया कलेंडर


चंदू मैंने सपना देखा, तुम हो बाहर मैं हूँ अंदर


चंदू मैंने सपना देखा, अमुआ से पटना आये हो


चंदू मैंने सपना देखा, मेरे लिये शहद लाये हो


चंदू मैंने सपना देखा, फैल गया है सुयश तुम्हारा


चंदू मैंने सपना देखा, तुम्हें जानता भारत सारा


चंदू मैंने सपना देखा, तुम तो बहुत बड़े डाक्टर हो


चंदू मैंने सपना देखा, अपनी ड्यूटी में तत्पर हो


चंदू मैंने सपना देखा, इमितिहान में बैठे हो तुम


चंदू मैंने सपना देखा, पुलिस-यान में बैठे हो तुम


चंदू मैंने सपना देखा, तुम हो बाहर, मैं हूँ अंदर


चंदू मैंने सपना देखा, लाए हो तुम नया कलेंडर

रविवार, 24 मई 2009

इतिहास से आदमी को अलग नहीं किया जा सकता

इतिहास से आदमी को अलग नहीं किया जा सकता.इतिहास का काम नायक खलनायक तय करना नहींइतिहास अतीत की पुनर्रचना है. देश और दुनिया में शिक्षकों का पतन हो रहा है
मनुष्य एक सांस्कृतिक और एतिहासिक प्राणी है। यह अपने आत्मगत अनुभव के साथ वस्तुगत नतीजे निकालता है और इतिहास का बोध करता है , यह मनुष्य की नैसर्गिक प्रवृत्ति है . मनुष्य इतिहास में जनमता है और इतिहास रचते हुए इतिहास बन जाता है. इतिहास भले ही प्राकृतिक विज्ञान नहीं है , लेकिन इतिहास से आदमी को अलग नहीं किया जा सकता . मनुष्य वर्तमान से अतीत पर नज़र डालता है . इतिहास का नायक और कारक शक्ति मनुष्य ही है अतः इतिहास देश का नहीं मानव का होता है .इतिहास का विषय मानव समाज है वहीं दूसरी और इतिहास का काम नायक खलनायक तय करना नहीं है यह तो साहित्य का विषय है.
आज मनुष्य का बौद्धिक विकास बहुत हो गया है। वह नित नए क्षेत्रों में प्रयोग कर रहा है. विज्ञान भी उन्ही में से एक है, लेकिन इतिहास विज्ञान की तरह तटस्थ नहीं हो सकता. इतिहास तो अतीत की पुनर्रचना है. हमारे देश में इतिहास अध्ययन की समस्या है पाठ्यक्रमों में इतिहास को गलत ढंग से प्रस्तुत कर पढ़ाया जाता रहा है जो अभी भी जारी है। इतिहास के बहाने किसीको नायक तो किसी को ख़लनायक बनाने वाले लोग ग़लत तथ्यों पर ज़ोर देते रहे हैं. यही कारण हैकि ओरंगजेब का चरित्र आज भी विवादास्पद है. इतिहास में प्राचीन काल और मध्यकाल जैसे विभाजन कृत्रिम हैं . भारत में आज भी पाषाण काल जारी है . यहाँ देश विभाजन और काल विभाजन ग़लत है . इतिहास के शिक्षकों का काम इतिहास बोध कराना है, जब कि देश और दुनिया में शिक्षकों का पतन उज़ागर रूप से हो रहा है फलस्वरूप अधिकांश विषयों को नष्ट करने का काम शिक्षक ही कर रहे हैं.
(इतिहासविद् प्रो. लालबहादुर वर्मा से आशेन्द्र की बातचीत पर आधारित )

मंगलवार, 19 मई 2009

रवींद्र जैन अब इंदौर में

राजएक्सप्रेस भोपाल के संस्थापक टीम में से एक रहे रवींद्र जैन ने राजएक्सप्रेस इंदौर के स्थानीय संपादक का पद संभाला है. इससे पहले वे ग्वालियर राजएक्सप्रेस के स्थानीय संपादक रहे . यहाँ उन्होंने लगभग सात महीने तक संपादक का पद संभाला. श्री जैन राज एक्सप्रेस भोपाल में सिटीचीफ के पद पर भी रह चुके हैं.

गुरुवार, 7 मई 2009

'मां' चार कविताएँ

(एक)
मां !
क्या सूख गया है ?
तुम्हारे स्तनों का दूध
तुम्हारी आँखों का पानी
या तुम्हारी ममता
जो -
संकट के बादल घिर आये हैं !
(दो)
मां !
क्या नहीं है ?
वह झूला
वह रातें, वे परियां
या वह लोरी
जो, आखों से उड़ गयी है नींद ...!
(तीन)
मां !
यहाँ क्या छूटा है ?
बचपन, जीवन
कलियाँ, मधुवन
या मैं, या तुम
या समय
(चार)
मां !
मैं तुम्हारे पेट मैं रहा
या तुम मेरे पेट में हो
तुमने मुझे जन्म दिया
या मैं तुम्हें दाग देने वाला हूँ
- आशेन्द्र

शनिवार, 2 मई 2009

पत्रकारिता चापलूसी का पेशा नहीं है

पत्रकारिता चापलूसी और टीपने का पेशा नहीं है . आखिर एक दिन तो जीहुजूरी का अंत होता ही है . ग्वालियर के एक दैनिक ने पहले तो मालिक की जी हुजूरी करने वाले संपादक को नौकरी से बर्खास्त कर दिया , लेकिन संपादक महोदय ने अपनी जगह पर आये दूसरे संपादक को ज्यादा दिन नहीं टिकने दिया और मक्खनबाजी के अपने हुनर से उन्हें कुर्सी से सरका दिया अब खुद उस पर विराजमान हैं . कुर्सी मिलते ही मक्खनबाज संपादक ने अपना रुतबा दिखाया और फोटोग्राफर से कथित तौर पर पर पत्रकार बने एक सज्जन की नौकरी ले डूबे . ये बात अलग है कि पत्रकारिता का चस्का ले चुके ये सज्जन अपने पुराने गुरु के पास फिर से पहुच गए हैं और पत्रकार बने रहने की कोशिश कर रहे हैं . चलते - चलते बता दूँ कि दैनिक भास्कर को लम्बे समय से अपनी सेवाएं दे रहे विभावाशु तिवारी ने भास्कर को अलविदा कह कर नई दुनिया, ग्वालियर ज्वाइन कर लिया है.

शुक्रवार, 20 मार्च 2009

श्रद्धांजलि सभा 23 को

देश की आज़ादी के लिये अपने प्राण न्यौछावर करने वाले बलिदानी शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को उनके बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि देने हेतु एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन "युवा संवाद" की ओर से ग्वालियरके सात नंबर चौराहे पर स्थित भगत सिंह की प्रतिमा के समक्ष किया गया है.आप सभी शहर वासियों से "युवा संवाद" अपील करता है कि यहाँ उपस्थित हो कर देश के अमर शहीद बलिदानियों को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करें।

स्थान- सात नंबर चौराहा, मुरार

दिनांक - 23, मार्च, सोमवार

समय- सुबह 8 बजे

बुधवार, 21 जनवरी 2009

अपने दिल की कहिए...

बसंत की दस्तक ने एक बार फिर से तन, मन और उपवन में आग लगा दी है। वसुन्धरा के श्रृंगार ने मन में अलसाए प्रेम को फिर से चैतन्य कर दिया है। मै भी छलांग लगाने को तैयार हूँ।

'खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार,
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।
मेरे इस माद्दे को और बल मिल जाता है जब फ़िराक साहब की बात मान लेता हूँ -
'कोई समझे तो एक बात कहूं
इश्क तौफ़ीक है गुनाह नहीं,
विज्ञान, साहित्य और शास्त्रों के उदाहरणों और तर्कों के बावज़ूद भी ये गुनाह कर डाला । विज्ञान ने कहा ये तो हारमोन...वगैरह के कारण होता ही है । साहित्य ने उम्र , रूप और जात -पात, धर्म के सारे बंधन ख़त्म कर दिए। शास्त्रों ने कहा प्रेम ही सत्य है इस लिए ईश्वर से प्रेम करो... ! बावज़ूद इन सब के मुझ में ये तौफ़ीक थी कि मैंने इश्क किया। अंत में दुनिया - दारी ने एक पाठ पढ़ाया
' ये सम ही सो कीजिए
ब्याह बैर और प्रीत,
इस पाठ में फ़ैल हो गया। और बशीर बद्र साहब की बात मान बैठा
' ये मोहब्बतों की कहानियां भी बड़ी अजीबो- ग़रीब हैं,
तुझे मेरा प्यार नहीं मिला, मुझे उसका प्यार नहीं
मिला
हालाँकि बकौल निदा साहब ये टीस तो है -
'दुःख तो मुझ को भी हुआ, मिला न तेरा साथ,
तुझ में भी न हो, तेरी जैसी बात'
अगर आप के अन्दर भी है कोई ऐसा ही दर्द, अहसास या आग, किसी खूबसूरत लम्हे की याद... अनुभूति। तो मेरे इस यज्ञ में आहुति देने के लिये आप भी प्रेम सहित आमंत्रित हैं । अगर आमंत्रण से परहेज हो तो अनियंत्रित हो कर भी इस सागर में गोता लगा सकते हैं।
अपनीबात... पर होगी इस माह प्रेम की बात। अपने दिल की कहिए कैसे भी...

शनिवार, 10 जनवरी 2009

तीसरा राज्य स्तरीय युवा चिंतन शिविर -2009

विगत वर्षो की तरह इस वर्ष भी 'युवा संवाद' की विभिन्न जिला इकाईयों द्वारा भोपाल में दिनांक 30,31 जनवरी व 01 फरवरी २009 को आइकफ आश्रम, शाहपुरा झील के पास तीन दिवसीय आवासीय शिविर का आयोजन किया जा रहा है। शिविर के लिये प्रस्तावित कार्ययोजना निम्नानुसार है।
पहला दिन - 3० जनवरी -

विषय - १- इतिहास एवं समाजिक परिवर्तन

- समय प्रात: 10:00 बजे से 1 बजे तक -

वक्ता - उमा शंकर तिवारी, प्रोफेसर आई. आई.आई टी, इलाहाबाद
विषय -२- साम्प्रदायिकता की राजनीति व उसका सामाजिक आयाम और विकल्प

- समय दोपहर 2 बजे से 5 बजे तक

- वक्ता : सुभाष गताड़े, सामाजिक चिंतक - दिल्ली
३- सांस्कृतिक कार्यक्रम के विभिन्न तरीकों पर चर्चा व प्रस्तुति की तैयारी

- समय साम 6 बजे से 8 बजें तक

- सहजकर्ता ‘‘संवेदन सास्कृतिक कार्यक्रम ’’ के साथी, अहमदाबाद
दूसरा दिन - 31.01.2009
-1 -युवा - छात्र व राजनैतिक हस्तक्षेप

-समय प्रात: 10:00 बजे से 1:00 बजें तक

- वक्ता : अशोक कुमार पाण्डेय, ग्वालियर
२- युवा सम्वाद - अभी तक का सफर व भविष्य की रणनीति

-समय दोपहर 2 बजे से 6 बजे तक

- सहजकर्ता अजय गुलाटी - ग्वालियर, फैज - देवास, उपासना - भोपाल,
३- सांस्कृतिक कार्यक्रम के विभिन्न तरीकों पर चर्चा व प्रस्तुति की तैयारी -

- समय शाम 6:30 बजे से 8 :30 बजें तक

- सहजकर्ता - ‘‘संवेदन सास्कृतिक कार्यक्रम ’’ के साथी, अहमदाबाद
तीसरा दिन - 01.02.2009
१- संस्कृति व आधुनिकता

- समय प्रात: 10 बजे से 1 बजे तक

- वक्ता - हिरेन गांधी, , अहमदाबाद व प्रदीप भोपाल ।
२- मध्य प्रदेश में समाजिक जन-आंदोलन का इतिहास-प्रभाव व भविष्य

- समय दोपहर 2 बजे से शाम 4 बजे तक

- वक्ता योगेश दिवान, राजनैतिक कार्यकर्ता, होशंगाबाद
३- कला व उसके प्रदर्शन के विभिन्न आयाम

- समय 4 बजे से 5:30 बजे तक

- वक्ता स्वरूप बेन व हिरेन गांधी ।
४- सांस्कृतिक संध्या का आयोजन शाम 6 बजे से
सम्पर्क-
जावेद :9424401459 @ गौरव :9713420233 @ फैज : ९८२६११००८४ @ अशोक:9425787930 @ देवेश:09981583770 @ इमरान : ९३००७७५४१६ @ उपासना :9424401469

गुरुवार, 1 जनवरी 2009

शुभकामनाएं

अपनीबात टीम की तरफ से आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक और मंगलमयी शुभकामनायें