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शनिवार, 10 सितंबर 2011

कारवाँ गुज़र गया

गोपालदास नीरज

स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़ेखड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पातपात झर गये कि शाख़शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क बन गए,
छंद हो दफन गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँधुआँ पहन गये,
और हम झुकेझुके,
मोड़ पर रुकेरुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

क्या शबाब था कि फूलफूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा,
इस तरफ ज़मीन उठी तो आसमान उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कलीकली कि घुट गयी गलीगली,
और हम लुटेलुटे,
वक्त से पिटेपिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखरबिखर,
और हम डरेडरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

माँग भर चली कि एक, जब नई नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरनचरन,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयननयन,
पर तभी ज़हर भरी,
गाज एक वह गिरी,
पुँछ गया सिंदूर तारतार हुई चूनरी,
और हम अजानसे,
दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

बुधवार, 7 सितंबर 2011

माया बहन जी

माया बहन जी की सेंडिल लेने विमान मुंबई जाता है. उधर जब बात नोटों की माला पहनने की आती है तो माया मैडम का जिक्र जरूर आता है. जब जिन्दा सुप्रीमो की मूर्ती बनवाने की बात होती है तब भी माया मैडम. माया की माया कौन जान सकता है, बहन जी आप से एक निवेदन है की इस बार जब भी आप अपना विमान मुंबई भेजें हमारे मठ्ल्लू को जरुर भेज दें उसे बिपासा जी को देखने का बहुत मन है. सुखिया इस के लिए आपकी आभारी रहेगी. आप इन मीडिया वालों से मत डरा करो इनकी तो आदत हो गयी है लोगों के कपडे उतारने की. जय हो.

रविवार, 4 सितंबर 2011

मेरे गुरु प्रभाकर जी

मुझे मेरे सही गुरु से पहला साक्षात्कार बी ए के दौरान हुआ. एमए करते - करते उनका पूरा आशीर्वाद मेरे साथ रहा. डॉ. ओम प्रभाकर देश के जाने माने साहित्यकार तो है ही साथ ही मुझे एक गुरु के रूप में उनका सानिध्य भी मिला यह मेरा सौभाग्य रहा. गुरु जी मै फ़िलहाल आपके सम्पर्क में नहीं हूँ , लेकिन आप जहां भी रहें हजारों साल जियें एक शिष्य के रूप में ईश्वर से मेरी यही कामना है.

शनिवार, 27 अगस्त 2011

क्या है जान लोकपाल बिल

- निधि शाह
कुछ जागरूक नागरिकों द्वारा शुरू की गई एक पहल का नाम है 'जन लोकपाल बिल'. इस कानून के अंतर्गत, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा. जस्टिस संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण और अरविन्द केजरीवाल द्वारा बनाया गया यह विधेयक लोगो के द्वारा वेबसाइट पर दी गयी प्रतिक्रिया और जनता के साथ विचार विमर्श के बाद तैयार किया गया है. यह संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी. कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी जांच की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर पायेगा. इस बिल को शांति भूषण, जे. एम. लिंगदोह, किरण बेदी, अन्ना हजारे आदि का भारी समर्थन प्राप्त हुआ है.

इस बिल की मांग है कि भ्रष्टाचारियो के खिलाफ किसी भी मामले की जांच एक साल के भीतर पूरी की जाये. परिक्षण एक साल के अन्दर पूरा होगा और दो साल के अन्दर ही भ्रष्ट नेता व आधिकारियो को सजा सुनाई जायेगी . इसी के साथ ही भ्रष्टाचारियो का अपराध सिद्ध होते ही उनसे सरकर को हुए घाटे की वसूली भी की जाये. यह बिल एक आम नागरिक के लिए मददगार जरूर साबित होगा, क्यूंकि यदि किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल बिल दोषी अफसर पर जुरमाना लगाएगा और वह जुरमाना शिकायत कर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा. इसी के साथ अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती है तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते है. आप किसी भी तरह के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते है जैसे कि सरकारी राशन में काला बाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी, या फिर पंचायत निधि का दुरूपयोग.

लोकपाल के सदस्यों का चयन जजों, नागरिको और संवैधानिक संस्थायो द्वारा किया जायेगा. इसमें कोई भी नेता की कोई भागीदारी नहीं होगी. इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से, जनता की भागीदारी से होगी.
सीवीसी, विजिलेंस विभाग, सी बी आई की भ्रष्टाचार निरोधक विभाग (ऐन्टी करप्शन डिपार्ट्मन्ट) का लोकपाल में विलय कर दिया जायेगा. लोकपाल को किसी जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिए पूर्ण अधिकार प्राप्त होंगें.

इस बिल की प्रति प्रधानमंत्री एवं सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को १ दिसम्बर २०१० को भेजी गयी थी, जिसका अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. इस मुहीम के बारे में आप ज्यादा जानकारी के लिए www.indiaagainstcorruption.org पर जा सकते हैं. इस तरह की पहल से समाज में ना सिर्फ एक उम्दा सन्देश जाएगा बल्कि, एक आम नागरिक का समाज के नियमों पर विश्वास भी बढेगा. हर सरकार जनता के प्रति जवाबदेह है, और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाना हर नागरिक का हक है.
(लेखिका सिम्बोयोसिस इंस्टिट्यूट ऑफ़ मीडिया एंड कम्युनिकेशन की छात्रा हैं )
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस से जनहित में साभार

शनिवार, 30 जुलाई 2011

छोटी उम्र का बड़ा सपना

जब किसी इंसान को कुछ पाने की लालसा होती है तब वो उसे पूरी ईमानदारी के साथ हांसिल करने की कोशिश करता है फिर लक्ष्य उसका कुछ भी हो....इसी तरह मेरे जीवन का भी एक लक्ष्य है जो की है एक प्रसिद्ध एंकर बनना...करीब १० साल की उम्र से ही ये सपना लिए हुए...हालाँकि मुझे यह पता नहीं था की एक एंकर बन्ने के लिए क्या करना पड़ता है बस बचपन मैं यही सोचती थी की टी।वी.पर माइक लेकर मैं भी आऊं एक दिन... मुझे भी बोलना है औरों की तरह...उसके बाद समय बीतता गया मैंने स्कूली पदाई ख़त्म करके कॉलिज मैं दाखिला लिया और बी.सी.ए.करने का निर्णय लिया...उसी दौरान मेरे एक टीचर ने जिनका नाम श्री केशव है यह बताया की मेरे अन्दर एंकर बन्ने के गुण हैं इसलिए मैं जेर्न्लिस्म का कोर्स करूँ... बस तभी से मैंने ठान ली की अब तो बी.सी.ए.ख़त्म करने के बाद एम .जे.एम .सी.की ही डिग्री करनी है...फिर थोडा और समय बीता तो मुझे अपने घर की आर्थिक स्थिति खराब होते हुए दिखी तब मैंने दिल्ली की एक कंम्पनी मैं जॉब करने का मन बनाया यह सोचकर की माँ -बाप को थोड़ा तो रिलेक्स मिले...फिर मैंने दो साल तक दिल्ली में ही जॉब की॥दिल्ली मैं एम.जे.एम.सी. का इतना स्कोप देखा तो मैंने वहीँ पर गुरु जभेश्वर यूनिवर्सिटी मैं डिस्टेंस कोर्स के साथ दाखिला ले लिया लेकिन पहले दिन की क्लास मैं ही मुझे एक टीचर के दुआरा पता चला की एम.जे.एम.सी. तो ग्वालियर मैं भी है वो भी रेगुलर कोर्स तब मैंने वहाँ से जॉब छोडी और बिना कुछ सोचे समझे ग्वालियर आ गयी...और आज मैं जीवाजी यूनिवर्सिटी सेकेण्ड सेमेस्टर की छात्रा हूँ...

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

मछली जल की रानी है...

"मछली जल की रानी है और शीला की जवानी है" ये वाक्य मैंने एक आठ दस साल के बच्चे के मुंह से सुना...ये सुनकर पहले तो मुझे हंसी आई लेकिन फिर मेरे दिमाग ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया की कैसे हमारे देश के बच्चों पर फूहड़ता भरे गानों का असर कितनी जल्दी आ जाता है ...उन्हें ये नहीं पता होता की वो जो बोल रहे हैं या वो जो गा रहे हैं किस हद तक सही है ..बस उन्हें गाने से मतलब होता है और सही भी है यदि उन्हें यही पता हो की क्या सही है और क्या गलत तो वह बच्चे ही क्यूँ कह्लाने लगे ...हालाँकि इन गानों की समय सीमा बहुत कम होती हे लेकिन जितने समय तक होती है उसी टाइम में बच्चे तो बच्चे बड़ों की भी जुबान पर उनका नाम रहता है... अगर हम पहले की बात करें तो फिल्मों या गानों मैं इतनी फूहड़ता तो नहीं होती थी तब शायद ही किसी बच्चे ने एक नर्सरी कक्षा की कविता को एक गाने के साथ जोड़कर गाया होगा...ऐसा मेरा मानना है..लेकिन देखा जाए तो आजकल के दौर मैं युवा इसी तरह के गानों और फिल्मों को देखना पसंद करते हैं इसलिए यही देखकर निर्माता ऐसी ही पिक्चरें बनाते हैं...इसमें उनकी भी कोई गलती नहीं है कहते भी हैं जो दिखता है वही बिकता है...और फिर उन्हें भी तो पैसा कमाना है ना ..एक बार मैं पहले के समय की बात उठाना चाहूंगी की पहले क्या वो लोग युवा नहीं थे जो बिना फूहड़ता भरी फिल्में पसंद किया करते थे..?क्या उन्हें मज़े करना अच्छा नहीं लगता था ?तब तो हम सभी अपने पूरे परिवार के साथ फिल्मों का आनंद लिया करते थे लेकिन अब वैसी सभ्य फ़िल्में बनती कहाँ हैं कुछ फ़िल्में तो ऐसी ऐसी बनी होती हैं की अगर कोई इंसान अकेला भी देख रहा हो तो भी उसको शर्म आ "मछली जल की रानी है और शीला की जवानी है" ये वाक्य मैंने एक आठ दस साल के बच्चे के मुंह से सुना...ये सुनकर पहले तो मुझे हंसी आई लेकिन फिर मेरे दिमाग ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया की कैसे हमारे देश के बच्चों पर फूहड़ता भरे गानों का असर कितनी जल्दी आ जाता है ...उन्हें ये नहीं पता होता की वो जो बोल रहे हैं या वो जो गा रहे हैं किस हद तक सही है ..बस उन्हें गाने से मतलब होता है और सही भी है यदि उन्हें यही पता हो की क्या सही है और क्या गलत तो वह बच्चे ही क्यूँ कह्लाने लगे ...हालाँकि इन गानों की समय सीमा बहुत कम होती हे लेकिन जितने समय तक होती है उसी टाइम में बच्चे तो बच्चे बड़ों की भी जुबान पर उनका नाम रहता है... अगर हम पहले की बात करें तो फिल्मों या गानों मैं इतनी फूहड़ता तो नहीं होती थी तब शायद ही किसी बच्चे ने एक नर्सरी कक्षा की कविता को एक गाने के साथ जोड़कर गाया होगा...ऐसा मेरा मानना है..लेकिन देखा जाए तो आजकल के दौर मैं युवा इसी तरह के गानों और फिल्मों को देखना पसंद करते हैं इसलिए यही देखकर निर्माता ऐसी ही पिक्चरें बनाते हैं...इसमें उनकी भी कोई गलती नहीं है कहते भी हैं जो दिखता है वही बिकता है...और फिर उन्हें भी तो पैसा कमाना है ना ..एक बार मैं पहले के समय की बात उठाना चाहूंगी की पहले क्या वो लोग युवा नहीं थे जो बिना फूहड़ता भरी फिल्में पसंद किया करते थे..?क्या उन्हें मज़े करना अच्छा नहीं लगता था ?तब तो हम सभी अपने पूरे परिवार के साथ फिल्मों का आनंद लिया करते थे लेकिन अब वैसी सभ्य फ़िल्में बनती कहाँ हैं कुछ फ़िल्में तो ऐसी ऐसी बनी होती हैं की अगर कोई इंसान अकेला भी देख रहा हो तो भी उसको शर्म आ जाए.................. मेरे हिसाब से इस तरह के गाने और फिल्मे दोनों ही चीज़ें बन्द हो जानी चाहिए सरकार को इसपर रोक लगा देनी चाहिए ............. नम्रता भारती

( नम्रता जीवाजी विवि ग्वालियर में पत्रकारिता की छात्रा हैं )