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बुधवार, 10 नवंबर 2010

उल्‍टे अक्षरों से लिख दी भागवत गीता


मिरर इमेज शैली में कई किताब लिख चुके हैं पीयूष

आप इस भाषा कोदेखेंगे तो एकबारगी भौचक्‍क रह जायेंगे. आपको समझ में नहीं आयेगा कि यहकिताब किस भाषा शैली में लिखी हुई है. पर आप ज्‍यों ही शीशे के सामनेपहुंचेंगे तो यह किताब खुद-ब-खुद बोलने लगेगी. सारे अक्षर सीधे नजरआयेंगे. इस मिरर इमेज किताब को दादरी में रहने वाले पीयूष ने लिखा है. इसतरह के अनोखे लेखन में माहिर पीयूष की यह कला एशिया बुक ऑफ वर्ल्‍डरिकार्ड में भी दर्ज है. मिलनसार पीयूष मिरर इमेज की भाषा शैली में कईकिताबें लिख चुके हैं.उनकी पहली किताब भागवद गीता थी. जिसके सभी अठारह अध्‍यायों को इन्‍होंनेमिरर इमेज शैली में लिखा. इसके अलावा दुर्गा सप्‍त, सती छंद भी मिरर इमेजहिन्‍दी और अंग्रेजी में लिखा है. सुंदरकांड भी अवधी भाषा शैली में लिखाहै. संस्‍कृत में भी आरती संग्रह लिखा है. मिरर इमेज शैली मेंहिन्‍दी-अंग्रेजी और संस्‍कृत सभी पर पीयूष की बराबर पकड़ है. 10 फरवरी1967 में जन्‍में पीयूष बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं.डिप्‍लोमा इंजीनियर पीयूष को गणित में भी महारत हासिल है. इन्‍होंने बीजगणित को बेस बनाकर एक किताब 'गणित एक अध्‍ययन' भी लिखी है. जिसमेंउन्‍होंने पास्‍कल समीकरण पर एक नया समीकरण पेश किया है. पीयूष बतातेंहैं कि पास्‍कल एक अनोखा तथा संपूर्ण त्रिभुज है. इसके अलावा एपी अधिकारएगंल और कई तरह के प्रमेय शामिल हैं. पीयूष कार्टूनिस्‍ट भी हैं. उन्‍हेंकार्टून बनाने का भी बहुत शौक है

शनिवार, 8 मई 2010

प्रकृति की अमूल्य रचना है पक्षी

(विश्व प्रवासी पक्षी दिवस पर विशेष)

- अनिल गुलाटी
पूरे विश्व में पिछले 30 सालों में पक्षियों की 21 प्रजातियां लुप्त हो गई, जबकि पहले औसतन सौ साल में एक प्रजाति लुप्त होती थी।यह आंकड़ा भले ही हमें आश्चर्य में डाल दें, पर यह सच है। यदि हम जल्द ही इन्हें बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाते हैं, तो हम प्रकृति की इस अमूल्य रचना को खो देंगे।पक्षियों की, खासतौर से प्रवासी पक्षियों की, हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रवासी पक्षी अपनी लंबी यात्रा से विभिन्न संस्कृतियों और परिवेशों को जोड़ने का काम करते हैं। उन्हें किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता। अपनी लंबी यात्रा में वे प्रत्येक साल पहाड़, समुद्र, रेगिस्तान बहादुरी से पार कर एक देश से दूसरे देश का सफर करते हैं। इस सफर में उन्हें तूफानन, बारिश एवं कड़ी धूप का भी सामना करना पड़ता है। प्रवासी पक्षियों की दुनिया भी अद्भुत है, सबकी अपनी-अपनी विशेषता है। पक्षियों की ज्ञात प्रजातियों में 19 फीसदी पक्षी नियमित रूप से प्रवास करते हैं, इनके प्रवास के समय और स्थान भी अनुमानित होते हैं। प्रवासी पक्षी हमारी दुनिया की जैव विविधता के हिस्सा हैं और कई बार उनके आचार-विचार से हमें यह पता लगाने में आसानी होती है कि प्रकृति में संतुलन है या नहीं।पक्षियों से जैव विविधता को बनाये रखने में मदद मिलती है और इस वजह से हमें दवाइयां, ईंधन, खाद्य पदार्थ, आदि महत्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलती है। इनमें कुछ ऐसी जरूरतें भी है, जिनके बिना हम अपने जीवन के बारे में सोच नहीं सकते। ऐसी स्थिति में हमें इनके संरक्षण और जैव विविधता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने ही चाहिएं।प्रवासी पक्षियों की इस महत्ता को देखते हुए 2006 से विश्व प्रवासी पक्षी दिवस मनाये जाते का निर्णय लिया गया। इसके तहत प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा के लिए अपनाये जाने वाले जरूरी उपायों को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जाता है, साथ ही इनके प्रवास को सहज बनाए रखने के उपाय किए जाते हैं। यह दिवस मई के दूसरे शनिवार को मनाया जाता है। 2010 में इस साल इसे 8 मई को पूरी दुनिया मनाया गया । इस दिन पक्षी प्रेमी शैक्षणिक कार्यक्रम, बर्ड वाचिंग, उत्सव आदि आयोजन करके पक्षियों को बचाने की मुहिम चलाते हैं।हर साल इस दिवस के लिए एक विषय तय किया जाता है। इस बार प्रवासी पक्षियों को संकट से बचाएं-सभी प्रजातियों की गणना करें विषय रखा गया है। इसका मुख्य उद्देश्य है- अति गंभीर स्थिति में खत्म होने के कगार पर खड़ी प्रजातियों को केन्द्र में रखते हुए विश्व स्तर पर संकटग्रस्त प्रवासी पक्षियों को बचाने के लिए जागरूकता पैदा करना। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2010 को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष घोषित किया गया। इसे ध्यान में रखते हुए विश्व प्रवासी पक्षी दिवस पर यह जोर दिया गया कि किस तरह से प्रवासी पक्षी हमारी जैव विविधता के हिस्सा हैं और किस तरह से पक्षी की एक प्रजाति के संकट में पड़ने से कई प्रजातियों के लिए संकट खड़ा हो जाता है । अंतत: यह पृथ्वी के पूरे जीव जगत के लिए खतरा बन सकता है। जैव विविधता किसी भी प्रकार के जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। इस तरह के दिवस या वर्ष सिर्फ उत्सव के लिए नहीं होते, बल्कि इसे पृथ्वी पर मौजूद जीवन की विविधता को बचाने के लिए निमंत्रण के रूप में लेना चाहिए। पृथ्वी पर जीवन उसकी जैव विविधता के कारण ही है। इसमें असंतुलन सभी प्रजातियों के लिए संकट का कारण हो सकता है। जीवन की उत्पत्ति में लाखों साल लगे हैं और इसी के साथ जैव विविधता की अद्भुत दुनिया का विकास भी हुआ है। यह विविधता सभी प्रजातियों को एक-दूसरे पर आश्रित रहने का प्रमाण है। यह सभी जैविक इकाइयों को उसकी जरूरतें पूरा करती है और मनुष्य के लिए भी यह भोजन, दवाइयां, ईंधन एवं अन्य जरूरतें उपलब्ध कराती है। पर अफसोस की बात है कि मनुष्य की गतिविधियों के कारण पक्षियों की कई प्रजातियां खत्म हो गई और कई खात्मे की कगार पर है। यह ऐसा नुकसान है, जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती और अंतत: जीविकोपार्जन पर संकट पैदा करते हुए जीवन को संकट में डाल देगा।विलुप्ति की वर्तमान दर प्राकृतिक विलुप्ति दर से हजार गुना ज्यादा है। कहां सौ साल में पक्षी की एक प्रजाति लुप्त होती थी और कहां अब पिछले 30 साल में 21 प्रजातियां लुप्त हो गई हैं।वैश्विक स्तर पर 192 पक्षी प्रजातियों को अति संकटग्रस्त श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है। यह पर्यवास का खत्म होना, शिकार, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, मनुष्यों द्वारा बाधा उत्पन्न करना आदि कारकों का परिणाम है, पर यह सभी किसी न किसी तरह से मनुष्यों के कारण ही है।यदि तत्काल कोई कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो कुछ सालों बाद हम इन संकटग्रस्त पक्षियों को खो देंगे। इन संकटग्रस्त प्रवासी पक्षियों को बचाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण काम यह होगा कि हमें इनके प्राकृतिक पर्यवास को बचाने के साथ-साथ नए पर्यवास विकसित करने होंगे। हमें यह विचार करना चाहिए कि किस तरह से ये अपने जीवन संरक्षण के लिए राजनीतिक, संस्कृतिक एवं भौगोलिक सीमाओं को लांघते हुए एक सुरक्षित रहवास के लिए हजारों किलोमीटर की कठिन सफर को पूरा करते हैं और यदि उन्हें प्रवास के लिए सुरक्षित स्थान नहीं मिलेगा तो क्या होगा? यह जरूरी है कि उनके पर्यवास के पास पर्याप्त सुरक्षा भी हो ताकि उनका शिकार न किया जा सके। भोपाल की झीलें हो या फिर इन्दौर की झीलें या अन्य छोटे-बड़े नम क्षेत्र, हमें उनके प्राकृतिक स्वरूप के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।निश्चय ही ऐसा करके हम न केवल पक्षियों का संरक्षण करेंगे बल्कि जैव विविधता को बचाते हुए अपनी भावी पीढ़ी के जीवन को ही बचाने का काम करेंगे।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

रविवार, 4 अप्रैल 2010

आँखों को बेनूर कर रहा पानी

लेखक: मीनाक्षी अरोड़ा

जन्मजात अंधापनबिहार के भोजपुर जिले के बीहिया से अजय कुमार, शाहपुर के परशुराम, बरहरा के शत्रुघ्न और पीरो के अरुण कुमार ये लोग भले ही अलग-अलग इलाकों के हैं, पर इनमें एक बात कॉमन है, वो है इनके बच्चों की आंखों की रोशनी। इनके साथ ही सोलह और अन्य परिवारों में जन्में नवजात शिशुओं की आँखों में रोशनी नहीं है। इनकी आँखों में रोशनी जन्म से ही नहीं है। बिहार के सबसे ज्यादा आर्सेनिक प्रभावित भोजपुर जिले में पिछले कुछ दिनों के अंदर 50 ऐसे बच्चों के मामले मीडिया में छाये हुए हैं जिनकी आँखों का नूर कोख में ही चला गया है। मामला प्रकाश में लाने वाले आरा के एक विख्यात नेत्र विशेषज्ञ हैं- डॉ। एसके केडिया, जो कहते हैं कि "जन्मजात अंधापन के दो मामले लगभग छह महीने पहले मेरे अस्पताल में आये थे। उस समय मुझे कुछ गलत नहीं लगा था। लेकिन जब इस तरह के मामले पिछले तीन महीने में नियमित अंतराल पर मेरे पास आने शुरू हुए तो मुझे धीरे-धीरे यह एहसास हुआ कि यह एक नई चीज है, मेरे 20 साल के कैरियर में जन्मजात अंधापन के मामले इतनी बड़ी संख्या में कभी नहीं आये थे।“ भोजपुर के लोग अपने नवजात शिशुओं को लेकर डरे सहमे से अस्पताल पहुँच रहे हैं। वे नहीं जानते कि उनका नन्हा सा बच्चा देख सकता है कि नहीं। क्योंकि शुरुआत में बच्चे में इस तरह के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते कि वे देख पा रहे हैं या नहीं। लोग अपना जिला छोड़कर राजधानी पटना के अस्पतालों में भी बच्चों की जांच करा रहे हैं। वे अपने बच्चों के बारे में किसी समस्या को सार्वजनिक भी नहीं करना चाहते क्योंकि इससे उनके सामाजिक ताने-बाने पर भी असर पड़ेगा।सरकार और उससे जुड़ी हुई विभिन्न स्वास्थ्य एजेन्सियां इस तरह के मामलों के पीछे का सही कारण पता करने में पूरी तरह असफल सिद्ध हुई हैं। लोगों को आशंका है कि इसके लिये पानी में मिला आर्सेनिक जिम्मेदार है। हालांकि भोजपुर के जिला सिविल सर्जन डॉ. केके लाभ कहते हैं कि मोबाइल फोन के टावरों से निकला इल्क्ट्रोमैग्नेटिक रेडियेशन भी बच्चों के अंधेपन का कारण हो सकता है। हम लोग सही कारण जानने की कोशिश कर रहे हैं। इस पूरे मामले में प्रमाणित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है पर एक चीज तो साफ है कि पर्यावरणीय प्रदूषण ही मुख्य कारण नजर आ रहा है।अभी तक देखा गया है कि आर्सेनिक युक्त जल के निरंतर सेवन से लोग शारीरिक कमजोरी, थकान, तपेदिक, (टीबी.), श्वाँस संबंधी रोग, पेट दर्द, जिगर एवं प्लीहा में वृद्धि, खून की कमी, बदहजमी, वजन में गिरावट, आंखों में जलन, त्वचा संबंधी रोग तथा कैंसर जैसी बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। पर गर्भ में ही बच्चों के अंधा होने की घटनाओं का होना एकदम नया मोड़ है।भोजपुर जिले का मुख्यालय आरा में आरोग्य संस्था के डॉ मृत्युंजय कुमार कई आशंकाएं व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि पहला कारण तो वंशानुगत हो सकता है। दूसरा कारण हो सकता है कि गर्भावस्था के दौरान दी जा रही किसी गलत दवा का असर हो। तीसरा यह भी हो सकता है कि आर्सेनिक से प्रभाव का यह कोई नया रूप हो, क्योंकि आर्सेनिक मानव के तंत्रिका तंत्र और स्नायु तंत्र पर असर तो करता ही है। भोजपुर, बिहार में सबसे अधिक आर्सेनिक प्रभावित जिलों में से एक है। पिछले साल बिहार में कराये गए एक सर्वे में 15 जिलों के भूजल में आर्सेनिक के स्तर में खतरनाक वृद्धि दर्ज की गई थी। आर्सेनिक प्रभावित 15 जिलों के 57 विकास खंडों के भूजल में आर्सेनिक की भारी मात्रा पायी गई थी। सबसे खराब स्थिति भोजपुर, बक्सर, वैशाली, भागलपुर, समस्तीपुर, खगड़िया, कटिहार, छपरा, मुंगेर और दरभंगा जिलों में है। समस्तीपुर के एक गाँव हराईछापर में भूजल के नमूने में आर्सेनिक की मात्रा 2100 पीपीबी पायी गई जो कि सर्वाधिक है। जबकि भारत सरकार के स्वास्थ्य मानकों के अनुसार पेयजल में आर्सेनिक की मात्रा 50 पीपीबी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 10 पीपीबी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। पानी में मिला आर्सेनिक बिहार ही नहीं पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तरप्रदेश, पंजाब सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में लोगों की जिंदगी बर्बाद कर रहा है। आज पानी कहीं कैंसर तो कहीं बच्चों में सेरेब्रल पाल्सी, शारीरिक-मानसिक विकलांगता बाँट रहा है। माँ के गर्भ में ही बच्चों से आँखे छीन लेने वाले पानी की एक नई सच्चाई हमारे सामने आने वाली है। हालांकि यह सच अभी आना बाकी है कि असली कारण क्या हैं पर जो भी हैं वे पानी- पर्यावरण प्रदूषण के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ेंगे। लेकिन इसके साथ यह भी एक कड़वा सच है कि इन सब के पीछे इन्सान ही जिम्मेदार है।धरती में जब पानी बहुत नीचे चला जाता है तब पानी कम, खतरनाक केमिकल ज्यादा मिलने लगते हैं। तभी पानी में फ्लोराइड, नाइट्रेट, आर्सेनिक और अब तो यूरेनियम भी मिलने लगा है। जब पानी आसमान से बरसता है तब उसमें कोई जहर नहीं होता। जब बारिश का पानी झीलों, तालाबों, नदियों में इकट्ठा होता है तब हमारे पैदा किए गए कचरे से प्रदूषित हो जाता है। पहले पानी झीलों, तालाबों, नदियों से धरती में समा जाता था लेकिन अब पानी के लिये सारे रास्ते हम धीरे-धीरे बंद करते जा रहे हैं। धरती में पानी कम जा रहा है जितना हम डालते हैं उसका कई गुना निकाल रहे हैं। ऐसे में धरती की खाली होती कोख जहर उगल रही है और माओं की कोख जन्मना अंधी संतानें। हालात धीरे-धीरे ऐसे होते जा रहे हैं कि धरती की कोख सूनी होती जा रही है। जमीन के नीचे पानी काफी कम हो गया है और जितना पानी बचा है उसकी एक-एक बूँद लोग निचोड़ लेना चाहते हैं। धरती की कोख को चीर कर उसके हर कतरे को लोग पी जाना चाहते हैं। सरकारें और उनकी नीतियां नलकूप, बोरवेल, डीपबोरवेल लगा-लगाकर धरती की कोख से सबकुछ निकाल लेना चाहती हैं।सूनी धरती, सूखी धरती से जब पानी बहुत नीचे चला जाता है तब पानी कम, खतरनाक केमिकल ज्यादा मिलने लगते हैं। तभी पानी में फ्लोराइड, नाइट्रेट, आर्सेनिक और अब तो यूरेनियम भी मिलने लगा है। जब पानी आसमान से बरसता है तब उसमें कोई जहर नहीं होता। जब बारिश का पानी झीलों, तालाबों, नदियों में इकट्ठा होता है तब हमारे पैदा किए गए कचरे से प्रदूषित हो जाता है। पहले पानी झीलों, तालाबों, नदियों से धरती में समा जाता था लेकिन अब पानी के लिये सारे रास्ते हम धीरे-धीरे बंद करते जा रहे हैं। धरती में पानी कम जा रहा है जितना हम डालते हैं उसका कई गुना निकाल रहे हैं। ऐसे में सूखी होती धरती की कोख अब अमृत रूप पानी नहीं जहर उगल रही है। धरती की खाली होती कोख जहर उगल रही है और माओं की कोख जन्मना अंधी संतानें। यह नहीं होना चाहिए, फिर क्या होना चाहिए?