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मंगलवार, 23 जून 2009

पत्रकार व्याख्याताओं की आवश्यकता है

देश के प्रतिष्ठित शारीरिक शिक्षा विवि लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा विवि, ग्वालियर के खेल प्रबंधन एवं खेल पत्रकारिता विभाग में व्याख्याताओं की आवश्यकता है. पत्रकारिता शिक्षा से जुड़े लोग इन पदों हेतु साक्षात्कार दे सकते हैं. साक्षात्कार का आयोजन दिनांक 30 जून को विवि परिसर में प्रातः 10 बजे से किया जायेगा. अनुबंध आधारित इन पदों के लिए प्रतिमाह रूपए 10,000 (दस हज़ार) मानदेय निर्धारित किया गया है. अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें. अथवा विवि के फ़ोन न. -0751-4000963 पर संपर्क करें.

रविवार, 14 जून 2009

बहन जी बनाम दलित मसीहा

गत लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ-साथ अडवाणी के पी।एम. बनने के सपने पर भी पानी फिर गया. भाजपा अपनी इस पराजय को लेकर अंदरूनी क्लेश से गुजर रही है. उमा भारती का प्रसंग (राजनीति) तो विधानसभा चुनाव में ही ख़तम हो गयी थी। बहन जी यानी उप्र की सीएम मायावती का पीएम बनने का सपना भी चकनाचूर हो गया. पीएम बनने के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने क्या-क्या नहीं किया ? कहीं ब्राम्हण सम्मलेन का आयोजन तो कहीं ...! बाबा साहब अम्बेडकर और कांसीराम की प्रतिमा के साथ अपनी आदम कद प्रतिमा लगवाकर बहन जी ने स्वयं को दलितों का मसीहा वाली श्रेणी में शामिल करने का कथित प्रयास किया है. अब बहन जी और उनकी पार्टी " खिसियानी बिल्ली ...!" वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को "नाटकबाज" कह कर वे स्वयं दलितों की मसीहा बनने के नौटंकी भरे कृत्यों और बयानबाजी पर उतर आयीं हैं.
समय - समय पर बहन जी द्वारा दिए जाने वाले बयान एक तरफ जहाँ उनकी सत्ता लोलुपता को ज़ाहिर करते हैं। दूसरी ओर वोट बैंक बचाए रखने की मंशा के भी परिचायक हैं . इस तरह के कृत्य और बयान समाज में जातीय विभाजन और द्वेष भावना के अतिरिक्त कोई काम नहीं कर सकते. अगर "बहन जी" ने अपना रवैया नहीं बदला तो उनका राजनीतिक भविष्य भी "दीदी" की तरह हो जायेगा।
चलते - चलते- मुफ्त की एक सलाह - बहन जी ! आप उप्र के किसी शांत और रमणीय स्थल से महापौर का चुनाव लड़िये संभवतः आपकी विजय होगी.और शुकून भरा जीवन व्यतीत करियेगा.

बुधवार, 10 जून 2009

किताबें कुछ कहना चाहती हैं

सब की ज़िन्दगी से किताबों का अन्योन्याश्रित नाता है. किताबों में हमारे ख़्वाब भी रहते हैं और कुछ सूखे हुए गुलाब भी, और बहुत कुछ जिसे आसानी से नहीं कहा जा सकता. सफ़दर हाश्मी साहब की ये कविता आप तक पंहुचा रहा हूँ. किताबें और क्या - क्या कहना चाहतीं हैं समझने की कोशिश कीजिए.
किताबें
करती हैं बातें
बीते ज़मानों की
दुनिया की, इंसानों की
आज की, कल की
एक एक पल की
खुशियों की, ग़मों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की
क्या तुम नहीं सुनोगे
किताबों की बातें ?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं
किताबों में चिडियां चहचहाती हैं
किताबों में खेतियां लहलहाती हैं
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं
किताबों में रोकिट का राज़ है
किताबों में साइंस की आवाज़ है
किताबों का कितना बड़ा संसार है
किताबों में ज्ञान की भरमार है
क्या तुम इस संसार में
नहीं जाना चाहोगे ?
किताबें कुछ कहना चाहतीं हैं
तुम्हारे पास रहना चाहतीं हैं

गुरुवार, 4 जून 2009

चंदू मैंने सपना देखा

क्रांतिकारी चेतना के कवि बाबा नागार्जुन की कवितायेँ एक ओर जहाँ सहजभाव की द्योतक हैं वहीं आम आदमी की पीड़ा का प्रतिनिधित्त्व भी करती हैं। प्रस्तुत है बाबा की एक चर्चित कविता "चंदू मैंने सपना देखा"

चंदू मैंने सपना देखा, उछल रहे तुम ज्यों हिरनौटा


चंदू मैंने सपना देखा, अमुआ से हूँ पटना लौटा


चंदू मैंने सपना देखा, तुम्हें खोजते बद्री बाबू


चंदू मैंने सपना देखा, खेल कूद में हो बेकाबू


चंदू मैंने सपना देखा, कल परसों ही छूट रहे हो


चंदू मैंने सपना देखा, खूब पतंगें लूट रहे हो


चंदू मैंने सपना देखा, लाये हो तुम नया कलेंडर


चंदू मैंने सपना देखा, तुम हो बाहर मैं हूँ अंदर


चंदू मैंने सपना देखा, अमुआ से पटना आये हो


चंदू मैंने सपना देखा, मेरे लिये शहद लाये हो


चंदू मैंने सपना देखा, फैल गया है सुयश तुम्हारा


चंदू मैंने सपना देखा, तुम्हें जानता भारत सारा


चंदू मैंने सपना देखा, तुम तो बहुत बड़े डाक्टर हो


चंदू मैंने सपना देखा, अपनी ड्यूटी में तत्पर हो


चंदू मैंने सपना देखा, इमितिहान में बैठे हो तुम


चंदू मैंने सपना देखा, पुलिस-यान में बैठे हो तुम


चंदू मैंने सपना देखा, तुम हो बाहर, मैं हूँ अंदर


चंदू मैंने सपना देखा, लाए हो तुम नया कलेंडर