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बुधवार, 17 सितंबर 2008

नई दख़ल अब 'युवा दख़ल' होगी

- अशोक पाण्डेय
दोस्तों ,कुछ तकनीकी कारणों से इस अंक से युवा संवाद, ग्वालियर की मासिक पत्रिका 'नई दख़ल' का नाम युवा दख़ल किया जा रहा है।
इस बार हमने इसे युवा विशेषांक के रूप में निकलने का फैसला किया है। इस अंक में मीडिया पर पवन मेराज, शिक्षा,आरक्षण और बाज़ार पर अजय गुलाटी, नैनो और अनाज पर अशोक चौहान ने लिखा है। साहित्य के अंतर्गत जेफरी आर्चर की कहानी, वेणु गोपाल तथा कुमार विकल की कवितायें तथा दलित जीवनियों पर जितेंद्र बिसारिया का आलेख होगा। फिरोज़ का कालम ये अलग मिजाज़ का शहर है तो होगा ही। चार अतिरिक्त पन्नो पर भगत सिंह से जुड़ी सामग्री होगी।
अगर आप प्रिंट में पढ़ने के शौकीन हैं तो 'युवा दख़ल' की वार्षिक सदस्यता है १० रुपये और सम्पादकीय पता - ५०८, भावना रेसीडेंसी , सत्यदेव नगर , गाँधी रोड, ग्वालियर -४७४००२
युवा दिवस का आयोजन -
युवा संवाद शहीदेआज़म भगत सिंह के जन्म दिवस को युवा दिवस घोषित कराने की मांग को लेकर २८ सितम्बर को ग्वालियर में एक परिचर्चा आयोजित कर रहा है जिसका विषय है " बाज़ार में युवा और भविष्य का स्वप्न" । इस परिचर्चा के प्रमुख वक्ता होंगे प्रो. लाल बहादुर वर्मा,वरिष्ठ पत्रकार पंकज बिष्ट और चतुरानन जी । आयोजन स्थल है ऐ-बिज़ कंप्यूटर सेंटर पड़ाव । और समय दोपहर ढाई बजे से आप भी हमारी इस मुहिम में शामिल हों।

बुधवार, 3 सितंबर 2008

एक चिट्ठी पुराने दोस्तों के नाम

हमारी दोस्ती की परीक्षा है
दोस्तों !
जिस समय गुजरात में भूकंप आया था भोपाल में रह कर भी हम सभी ने उसके झटके महसूस किये थे। ज़वानी के जोश और अपने ज़मीर की आवाज़ सुन कर हम सभी गुजरात में राहत कार्य हेतु रवाना हो गए। टीम भावना के साथ हम ने गुजरात में रहत कार्य में अपनी भूमिका निभाई। गुजरात में राहत कार्य के दौरान हम सभी के अपने अनुभव रहे . वो अनुभव और उससे जुडी स्म्रतियां आज भी हमारी धरोहर हैं. उस समय हम सभी पत्रकारिता वि. वि. के छात्र थे . आज हम सभी की अपनी व्यक्तिगत, पारिवारिक , सामजिक और व्यावसायिक जिंदगी है. हम सभी आज अपनी - अपनी भूमिका में पहले से कहीं अधिक सशक्त हैं . ऑरकुट की चुहुलबाजी और चेटिंग या एसएमएस के ज़रिये ही सही, लेकिन हम सभी आपस में जुड़े हैं .
सच्चे मित्र, शुभचिंतक और प्रेमी की पहचान आपातकाल में ही होती है . हम सभी की मित्रता की परीक्षा लेने इस बार बिहार में कोसी नदी ने अपना कहर बरपाया है . तीस लाख से अधिक लोग दिन में सैकडों बार अपनी ज़िंदगी ख़त्म होने के खौफनाक सपने का झटका खा रहे हैं. गुजरात भूकंप से लेकर बिहार बाढ़ त्रासदी तक सरकारी राहत के रवैये में कोई परिवर्तन नहीं आया है. उसी तरह हमारी सोच,संवेदनाएं और जोश भी अब तक बरक़रार है। हम किसी मीडिया संस्थान में कार्यरत हैं अथवा अन्य संस्थान को सेवाएं दे रहे हैं।
कोसी नदी का रौद्र रूप बिहार के एक बड़े हिस्से से मानवता का अस्तित्व खत्म करने की पुरज़ोर कोशिश में है। इतने सालों बाद हमारी दोस्ती और टीम भावना की परीक्षा एक बार फिर से ली जा रही है। हम जहाँ भी हैं वहां से अपने पूरे जुनून और जोश के साथ अपनी दोस्ती का ध्वज लेकर परिस्थितियों पर फ़तह पाने की एक ईमानदार कोशिश कर सकते हैं। अपने - अपने स्तर के अतिरिक्त हम बिहार कोसी बाढ़ ब्लॉग पर भी जुड़ रहे हैं।
आईये और जिंदादिली के साथ हाथ बढाईये।
धन्यवाद और शुभकामनाओं के साथ आपका अपना साथी - आशेन्द्र

मंगलवार, 2 सितंबर 2008

अपील

इसलिए अभियान

क्योंकि उत्तर-पूर्वी बिहार के पांच जिलों में आई यह तबाही महज साधारण बाढ़ नहीं, बल्कि एक नदी के रास्ता बदल लेने की भीषण आपदा है।इस तबाही के कारण 24 लाख से अधिक लोग बेघर हो गए हैं और उन्हें तकरीबन दो साल इन्ही हालात में रहना होगा।जब तक टूटे बांध बांधकर नदी को पुरानी धारा की ओर न मोड दिया जाए.ऐसे में पूरे देश के हर जिले से जब तक राहत सामग्री न भेजी जाए विस्थपितों की इतनी बडी संख्या को राहत पहुंचाना मुमकिन नहीं.क्योंकि देश में इस आपदा को लेकर अब तक वैसे अभियान नहीं चलाए जा रहे जैसे पिछ्ली त्रासदियों के दौरान चलाए गए थे. सम्भवतः केन्द्र की 1000 करोड़ रुपए की सहायता को पर्याप्त मान लिया गया है.जबकि केन्द्र सरकार का यह पैकेज 24 लाख विस्थापितों के लिए ऊंट के मुंह में जीरा से भी कम है. क्योंकि इन्हीं पैसों से टूटे बांधों की मरम्मत और बचाव अभियान भी चलाया जाना है. ऐसे में इन विस्थापितों के राहत और पुनर्वास के लिए दो हजार रुपए प्रति व्यक्ति से भी कम बचता है.और इसलिए भी कि यह एक ऐसी जिम्मेदारी है जिससे मुंह मोडना कायरता से भी बुरी बात होगी.
मदद करें -
अगर आप इन विस्थापितों की मदद करना चाहते हैं तो अपने शहर और आसपास के इलाकों से राहत सामग्री हमें भेज सकते हैं या खुद आकर प्रभावित इलाकों में बांट सकते हैं।अगर आप खुद बांटना चाहेंगे तो हम आपको स्थानीय स्तर पर मदद कर सकते हैं.

आवश्यक राहत सामग्री -
- टेंट
- कपड़ा - पहने व ओढने बिछाने के लिए
- दवाइयां
- क्लोरीन की गोलियां
- भोजन सामग्री
- अनाज
- नमक
- स्टोव
- टॉर्च व बैटरी
- प्लास्टिक शीट
- लालटेन
- मोमबत्ती व माचिस
हमारा सम्पर्क :
विनय तरुण- 09234702353 , पुष्यमित्र - 09430862739 (भागलपुर)
अजित सिंह- 09893122102, आशेन्द्र सिंह - 09425782254 (भोपाल)
Email- biharbaadh@gmail.com

सोमवार, 1 सितंबर 2008

हम सब विपदा में हैं

बिहार में बाढ़ की त्रासदी, उड़ीसा में साम्प्रदायिकता की आग और इस बीच गणेश चतुर्थी और बुधवार का शुभ संयोग। जब सारी दिशाओं में ज़िन्दगी आपदाओं के सफ़े पर अपना वज़ूद तलाश रही हो तब कहाँ का शुभ संयोग. ज़मीनी तौर पर बिहार हो या उड़ीसा सबका अपना भूगोल हो सकता है लेकिन हमारे (जिस में आप भी शामिल हैं) ज़हन में सभी का एक अखंड मानचित्र है. हम सब विपदा में हैं. किसी की आखें पानी में घर तलाश रही हैं तो कोई आग में अपने परिजनों की जलती हुई तस्वीर देख रहा है.असमान पर उम्मीद तलाशती आखों में खाने के पैकिट चाँद बन गए हैं. हमारे मित्र सचिन का एक मेल आज मिला जस का तस प्रस्तुत कर रहा हूँ.
आज सुबह भागलपुर से विनय तरुण का फोन आया. परेशान और हडबडाती आवाज में उन्होंने बताया कि बाढ की आढ में जारी सरकारी नरसंहार के बीच लोग थकने लगे हैं. मददगार हाथों की ताकत भी धीरे धीरे खत्म हो रही है. उनकी उम्मीद भरी आंखें देश के हर हिस्से की तरफ ताक रही हैं. वे नहीं कह पाए कि हम क्या करें. भोपाल से बैठकर सिर्फ देखा, पढा और सुना जा सकता है कि वहां जिंदगी कितनी पानी है और कितनी जमीन. आज यानी एक सितंबर को शाम छह बजे कुछ साथी त्रिलंगा में मिलेंगे. हम उम्मीद करते हैं कि आप वहां आएंगे और कोई राह सुझाएंगे कि बेचैन करने वाले वक्त में ढांढस के अलावा कोसी के बीच फंसी जिंदगियों को क्या दिया जा सकता है. समय की कमी हो तो फोन कर लें. आप आइये फिर बात करते हैं।
सचिन का मोबाईल नंबर है - +९१९९७७२९६०३९
नई इबारतें