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रविवार, 24 मई 2009

इतिहास से आदमी को अलग नहीं किया जा सकता

इतिहास से आदमी को अलग नहीं किया जा सकता.इतिहास का काम नायक खलनायक तय करना नहींइतिहास अतीत की पुनर्रचना है. देश और दुनिया में शिक्षकों का पतन हो रहा है
मनुष्य एक सांस्कृतिक और एतिहासिक प्राणी है। यह अपने आत्मगत अनुभव के साथ वस्तुगत नतीजे निकालता है और इतिहास का बोध करता है , यह मनुष्य की नैसर्गिक प्रवृत्ति है . मनुष्य इतिहास में जनमता है और इतिहास रचते हुए इतिहास बन जाता है. इतिहास भले ही प्राकृतिक विज्ञान नहीं है , लेकिन इतिहास से आदमी को अलग नहीं किया जा सकता . मनुष्य वर्तमान से अतीत पर नज़र डालता है . इतिहास का नायक और कारक शक्ति मनुष्य ही है अतः इतिहास देश का नहीं मानव का होता है .इतिहास का विषय मानव समाज है वहीं दूसरी और इतिहास का काम नायक खलनायक तय करना नहीं है यह तो साहित्य का विषय है.
आज मनुष्य का बौद्धिक विकास बहुत हो गया है। वह नित नए क्षेत्रों में प्रयोग कर रहा है. विज्ञान भी उन्ही में से एक है, लेकिन इतिहास विज्ञान की तरह तटस्थ नहीं हो सकता. इतिहास तो अतीत की पुनर्रचना है. हमारे देश में इतिहास अध्ययन की समस्या है पाठ्यक्रमों में इतिहास को गलत ढंग से प्रस्तुत कर पढ़ाया जाता रहा है जो अभी भी जारी है। इतिहास के बहाने किसीको नायक तो किसी को ख़लनायक बनाने वाले लोग ग़लत तथ्यों पर ज़ोर देते रहे हैं. यही कारण हैकि ओरंगजेब का चरित्र आज भी विवादास्पद है. इतिहास में प्राचीन काल और मध्यकाल जैसे विभाजन कृत्रिम हैं . भारत में आज भी पाषाण काल जारी है . यहाँ देश विभाजन और काल विभाजन ग़लत है . इतिहास के शिक्षकों का काम इतिहास बोध कराना है, जब कि देश और दुनिया में शिक्षकों का पतन उज़ागर रूप से हो रहा है फलस्वरूप अधिकांश विषयों को नष्ट करने का काम शिक्षक ही कर रहे हैं.
(इतिहासविद् प्रो. लालबहादुर वर्मा से आशेन्द्र की बातचीत पर आधारित )

मंगलवार, 19 मई 2009

रवींद्र जैन अब इंदौर में

राजएक्सप्रेस भोपाल के संस्थापक टीम में से एक रहे रवींद्र जैन ने राजएक्सप्रेस इंदौर के स्थानीय संपादक का पद संभाला है. इससे पहले वे ग्वालियर राजएक्सप्रेस के स्थानीय संपादक रहे . यहाँ उन्होंने लगभग सात महीने तक संपादक का पद संभाला. श्री जैन राज एक्सप्रेस भोपाल में सिटीचीफ के पद पर भी रह चुके हैं.

गुरुवार, 7 मई 2009

'मां' चार कविताएँ

(एक)
मां !
क्या सूख गया है ?
तुम्हारे स्तनों का दूध
तुम्हारी आँखों का पानी
या तुम्हारी ममता
जो -
संकट के बादल घिर आये हैं !
(दो)
मां !
क्या नहीं है ?
वह झूला
वह रातें, वे परियां
या वह लोरी
जो, आखों से उड़ गयी है नींद ...!
(तीन)
मां !
यहाँ क्या छूटा है ?
बचपन, जीवन
कलियाँ, मधुवन
या मैं, या तुम
या समय
(चार)
मां !
मैं तुम्हारे पेट मैं रहा
या तुम मेरे पेट में हो
तुमने मुझे जन्म दिया
या मैं तुम्हें दाग देने वाला हूँ
- आशेन्द्र

शनिवार, 2 मई 2009

पत्रकारिता चापलूसी का पेशा नहीं है

पत्रकारिता चापलूसी और टीपने का पेशा नहीं है . आखिर एक दिन तो जीहुजूरी का अंत होता ही है . ग्वालियर के एक दैनिक ने पहले तो मालिक की जी हुजूरी करने वाले संपादक को नौकरी से बर्खास्त कर दिया , लेकिन संपादक महोदय ने अपनी जगह पर आये दूसरे संपादक को ज्यादा दिन नहीं टिकने दिया और मक्खनबाजी के अपने हुनर से उन्हें कुर्सी से सरका दिया अब खुद उस पर विराजमान हैं . कुर्सी मिलते ही मक्खनबाज संपादक ने अपना रुतबा दिखाया और फोटोग्राफर से कथित तौर पर पर पत्रकार बने एक सज्जन की नौकरी ले डूबे . ये बात अलग है कि पत्रकारिता का चस्का ले चुके ये सज्जन अपने पुराने गुरु के पास फिर से पहुच गए हैं और पत्रकार बने रहने की कोशिश कर रहे हैं . चलते - चलते बता दूँ कि दैनिक भास्कर को लम्बे समय से अपनी सेवाएं दे रहे विभावाशु तिवारी ने भास्कर को अलविदा कह कर नई दुनिया, ग्वालियर ज्वाइन कर लिया है.