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शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

दिल्ली में ना होने का मतलब !


दिल्ली क्या छूटी अपनों ने तो जैसे बिसरा ही दिया। मोहब्बती दोस्त हों या साहित्यकार मित्र, पत्रकार परिवार के सदस्य हों या एनजीओ बिरादरी के सखा, अब हर कोई क्रमशः भूलता जा रहा हैं । कभी -कभार कुछ लोगों का फ़ोन गलती से आ भी जाता है तो बस वही एक सवाल कहाँ हो यार ? और जब मै बताता हूँ ग्वालियर में हूँ तो वही एक जवाब चलो यार तुम से फुर्सत में बात करता हूँ। अब यह सोचता हूँ कि जब तक दिल्ली में रहा लोगों के दिलों के इतना नज़दीक क्यों रहा। कुछ बातें समझ में आतीं हैं जैसे मोहब्बती दोस्तों का प्रिय तो इस लिये रहा जब भी उन के पास एक - दो दिन की फुर्सत होती थी और दिल्ली घूमने का मन होता था मुझे याद कर लिया करते थे रहने, खाने और घुमाने की जिम्मेदारी मेरी होती थी जिसे मै बखूब ही निभा देता था। साहित्यकार मित्रों का प्रिय इस लिये रहा क्यों कि उन की पत्र - पत्रिकाओं के लिये जो भी लिखकर भेजता था उसके अंत में लिखा दिल्ली का पता मेरी रचना के साथ - साथ उनके प्रकाशन का सम्मान भी बन जाता था। मुझ से ज्यादा मेरे साहित्यकार मित्रों को मेरे दिल्ली में होने की खुशी थी. मेरा एड्रेस उनकी पत्रिका या अख़बार का रुतबा जो बढ़ता था. पत्रकार परिवार के सदस्य आये दिन इस लिये मुझे फ़ोन और मेल कर लेते थे क्यों कि उनकी एक ही फ़रमाइश रहती थी यार दिल्ली के किसी अखबार या चैनल में जुगाड़ लगाओ ना. रही बात एनजीओ बिरादरी के सखाओं की तो मुझे याद करने के उनके पास बहुत से कारण थे. जंतर - मंतर पर किसी मुद्दे को लेकर धरना देना हो या किसी अन्य एनजीओ छाप आयोजन में भीड़ जुटानी हो मैं भीड़ की एक इकाई के रूप में शुमार रहता था. किसी - किसी आयोजन में तो मेरे साथ - साथ मेरे संगठन का नाम भी जोड़ लिया जाता था. (दिल्ली के एक संगठन का अपना वजन होने के भ्रम से ) . दिल्ली के अलग - अलग रूट्स के बसों के नंबरों से लेकर कुछ ख़ास सस्थाओं के कार्यालयों के पतों की जानकारी लेने में मेरा उपयोग कर लिया जाता था. अब ऐसे में मेरा प्रिय होना लाजमी था. ग्वालियर में आने के बाद मित्रों और शुभ चिंतकों को एसएमएस और ई - मेल कर कई बार अपना एड्रेस बता चूका हूँ, लेकिन डाक अब तक दिल्ली के पते पर ही जा रही है. क्या यह दिल्ली में ना होने का मतलब है...?

बुधवार, 17 दिसंबर 2008

सुना है...

ग्वालियर दैनिक भास्कर से राज एक्सप्रेस में कूच कर गए कुछ लोगों से त्रस्त हो कर भास्कर ने कुछ और लोगों की छटनी करना शुरू कर दिया है. इस में कई महारथियों के चपेट में आने की संभावना है. वहीँ दूसरी और पत्रिका के ग्वालियर संस्करण के खतरे को भापते हुए भास्कर ग्वालियर ने गिफ्ट और कूपनबाज़ी के साथ -साथ मेन पावर को स्ट्रोंग करना भी शुरू कर दिया है. सब एडिटर इन दिनों पेज लगाने की ट्रेनिंग ले रहे हैं. उधर ग्वालियर शहर से चुनावी मेढ़क की तरह बाहर निकला एक दैनिक चुनाव ख़तम होते ही डूब रहा है. हम अपने मन से कुछ नहीं कहते लेकिन सुना है कि शहर का एक घायल अख़बार दम तोड़ने की कगार पर है.

सोमवार, 1 दिसंबर 2008

"किरण-2008" आयोजन

सामाजिक संस्था "परवरिश" के तत्वावधान में मानसिक एवं शारीरिक रूप से निःशक्त बच्चों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति 3 दिसम्बर को की जाएगी. इन बच्चों को समाज की प्रमुख धारा से जोड़ने के उद्देश्य से गत 3 सालों से कार्यरत "परवरिश" संस्था के इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रशासनिक अधिकारी एवं राजस्व मंडल के सदस्य एस सी वर्धन होंगे. बच्चों द्वारा आयोजित इन कार्यक्रमों को किरण-2008 का नाम दिया गया है।

स्थान- चेंबर ऑफ़ कामर्स

दिनांक - 3 दिसम्बर 2008

समय - दोपहर २ बजे से

"परवरिश"सी एच -127 डी। डी। नगर ग्वालियर- 474 020 (म.प्र.) 9826609117, 9926719601