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गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

हमाए भिंड में तो इत्ता सा रस अठन्नी में मिलता था...

आज सुबह जब सो कर उठा तो बाहर से एक गाड़ी की तेज आवाज आई... यह आवाज ट्रेक्टर जैसी थी। (इस गाड़ी को स्थानीय भाषा में जुगाड़ कहा जाता है, यह पूरी गाड़ी एक जुगाड़ की तकनीक से ही बनाई जाती है इसे चलाने के लिए न कोई लाइसेंस लेना होता है और न हीं इसका कोई रजिस्ट्रेशन होता है) इस पर गन्ने का रस बिक रहा था। सोकर उठा था, लेकिन आज मन किया कि पहले पानी न पीते हुए गन्ने का रस पिया जाए। पत्नी से कहा कि जाओ और एक गिलास गन्ने का रस इससे ले आओ। पत्नी अंदर आई और बोली कि ये लो रस और 10 का खुला नोट दो ... इतना सा रस 10 रुपए का ...!!! मैंने आश्चर्य व्यक्त किया... खैर 10 रुपए तो दे दिए पर यह 10 रुपए इतने से रस के अखर गए वह भी बिना नीबू और काला नमक का रस। पुराने दिन याद आ गए । हमाए भिंड में तो इत्ता सा रस अठन्नी में मिलता था...। मैं मूलत: भिंड का रहने वाला है। राज टॉकीज यहां की फेमस टॉकीज है। इसी के बगल में एक दुकान थी गन्ने के रस की । स्कूल से आते - जाते इस दुकान पर निगाहें जाती थीं । स्कूल से लौटते समय इस पर अक्सर रस पीता ही था... जैसे ही दुकान पर पहुंचो ... दुकानदार खुश हो कर मशीन में गन्ने पेरने लगता और चर्र.. चर्र.. की आवाज के साथ 10 मिनट में गन्ने का रस हाजिर वो भी भरपूर नीबू, पोदीना और काले नमक प्लस बर्फ के साथ...। हाफ पैंट और हाफ शर्ट पहने अपन बस्ते को उतारते और पूरा रस पेट के अंदर फिर ऊपर से एक गिलास ठंड पानी भी .. और अठन्नी थमा देते । बड़ा गिलास कभी पीते ही नहीं थे क्यों कि मन में एक धारणा थी कि बड़ा गिलास भरके रस तो बड़े आदमी पीते हैं। पर अब ताे हमारे भिंड भी बदल गया होगा... इतने सालों में जब गन्ने के रस की कीमत 20 गुना बढ़ गई है तो हमारा भिंड कितना बदला होगा...।