-मंतोष कुमार सिंह
नक्सलवाद से प्रभावित 11 राज्यों में से छत्तीसगढ़ की स्थिति सबसे विस्फोटक है। नक्सलियों की धमक प्रदेश के सभी जिलों में देखी जा रही है। वर्ष 2007 में देश में नक्सलियों ने 580 हत्याएं कीं। जिस में आधे से अधिक हत्याएं छत्तीसगढ़ में की गईं। पिछले कुछ वर्षों से नक्सली कहर का शिकार बच्चे भी होने लगे हैं, जिसका ताजा उदाहरण 10 फरवरी-2008 को पोलियोरोधी अभियान के दौरान देखी गई। नक्सली दहशत के कारण बस्तर संभाग में एक सौ से अधिक गांवों में पल्स-पोलियो अभियान के तहत मासूमों को पोलियोरोधी दवा नहीं पिलाई जा सकी। नक्सल प्रभावित बीजापुर के 62, दंतेवाड़ा के 50 और नारायणपुर जिले के 27 गावों के दुर्गम क्षेत्रों में होने तथा नक्सली वारदातों के भय से इन गांवों में स्वास्थ्य कार्यकर्ता नहीं पहुंच पाए। नारायणपुर जिले के ओरछा विकास खंड के अबुङामाड़ क्षेत्र मे जहां दुर्गम पहाड़ों के बीच बसे 27 गांवों में बच्चों को दवा नहीं पिलाई जा सकी। दरअसल नक्सलियों द्वारा बारूदी सुरंगों और अन्य विस्फोटों के बिछाए जाने की वजह से स्वास्थ्य कार्यकर्ता वहां तक जाने की हिम्मत नहीं जुटा सके। दूसरी ओर नक्सली कहर के चलते सुनहरे भविष्य का ख्याब बुन रहे बच्चों को कहीं अध्यापकों की कमी तो कहीं स्कूलों की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। कई गांवों में अभी तक स्कूल नहीं खोले जा सके हैं। दहशत के चलते अधिकांश स्कूलों में अध्यापक जाने से कतराते हैं। जहाँ टीचर हैं वहां अभिभावक अपने बच्चों को भेजना खतरे से खाली नहीं समझते हैं। कई स्कूलों पर नक्सलियों ने कब्जा जमा लिया है तो कई में पुलिस के जवानों ने डेरा डाल दिया है। ऐसे में देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों का क्या होगा नक्सलवाद के चलते प्राथमिक और उच्च प्राथमिक शिक्षा क्षेत्र में छत्तीसगढ़ फिसड्डी साबित हो रहा है। 2005-06 के शिक्षा विकास इंडेक्स में देश में छत्तीसगढ़ का 22 वां स्थान था, लेकिन 2006-07 में प्रदेश पांच अंक नीचे खिसकते हुए 27 वें नंबर पर पहुंच गया है। प्राथमिक शिक्षा में प्रदेश 2005-06 के दौरान 0.557 सूचकांक मूल्य के साथ 16 वें स्थान पर था, लेकिन 2006-07 में शिक्षा का स्तर काफी नीचे चला गया। इस दौरान 0.517 सूचकांक मूल्य के साथ छत्तीसगढ़ी पूरे देश में 27 वां स्थान ही पा सका। वहीं उच्च प्राथमिक शिक्षा में प्रदेश को 26 वां स्थान मिला है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि केंद्र और राज्य सरकार के अधिकाँश प्रयास बेकार साबित हो रहे हैं। शिक्षा विकास इंडेक्स 2006-07 पर नज़र डालें तो मात्र 58.61 प्रतिशत स्कूल ही पक्के भवनों में चल रहे हैं। 84.97 प्रतिशत स्कूलों में ही पीने का पानी उपलब्ध है, वहीं 26.65 स्कूलों में लड़के और लड़कियों के लिए अलग प्रसाधन की व्यवस्था नहीं है। मात्र 13.33 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग प्रसाधन है। 41.52 स्कूलों में ही चारदीवारी है। कंप्यूटर के मामले में छत्तीसगढ़ काफी पीछे है। प्रदेश के मात्र 5.71 प्रतिशत स्कूलों में ही कंप्यूटर है, जबकि 29.67 प्रतिशत स्कूलों में ही रसोईघर की व्यवस्था है। प्रदेश के प्राथमिक स्कूल शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं। लगभग 17 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में अध्यापक नहीं हैं, जबकि 7.74 प्रतिशत प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल एक शिक्षक के सहारे चल रहे हैं। इसमें प्राथमिक स्कूलों का प्रतिशत 10.65 है। ऐसे में 2010 तक 6 से 14 वर्ष के समस्त बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध करना मुश्किल ही नहीं असंभव भी है।
(मंतोष कुमार सिंह दैनिक हरिभूमि (रायपुर) में वरिष्ठ उप संपादक के पद पर कार्यरत हैं और जनसामान्य तथा विकास से जुडे मुद्दों पर गहरी पकड़ के साथ लेखन करते हैं.)
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1 घंटे पहले
1 टिप्पणी:
नक्सलवाद नासूर है। लेकिन, इस नासूर को पालने वाले सफेदपोश समाज के लिए उतने ही खतरनाक हैं।
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