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रविवार, 10 फ़रवरी 2008

गंदगी...गंदगी बनाम मौत

-आशेन्द्र सिंह
हा
ही में दुनिया भर के 60 स्वास्थ्य समूहों की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि दुनिया में प्रतिदिन लगभग 5 हज़ार बच्चों की मौत साफ़ - सफ़ाई में लापरवाही के कारण या कह सकते हैं गंदगी के कारण होती है । इस रिपोर्ट के तथ्यों को अख़बारों ने प्रमुखता से स्थान दिया। मीडिया के लिये यह एक ख़बर बन कर रह गई, किन्तु हम सब के लिए एक चिंता का विषय है। प्रतिदिन काल के गाल में समां जाने वाले इन बच्चों में एक बड़ी संख्या भारत के बच्चों की भी है।
इन मौतों के लिये सिर्फ साफ़- सफ़ाई का न होना ही ज़िम्मेदार नहीं है , बल्कि गरीबी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, राजनीति और इच्छाशक्ति की कमी जैसी सामजिक और व्यवस्थागत गंदगी भी जिम्मेदार है। रेलवे प्लेटफार्म हो अथवा पार्क सहित अन्य कोई सार्वजनिक स्थान यहाँ मैले-कुचैले कपड़ों में घूमते बच्चे कूड़ेदान खंगालते नज़र आते हैं। आपने खाया, जो बचा उसे फ़ेंक दिया यही इन बच्चों का भोजन होता है। जिस घर में रोज़ी - रोटी का इंतज़ाम न हो उस घर में इन बच्चों की दवाई कराना महज़ एक शिगूफा हो सकता है। सरकार ने अपनी उपलब्धियों की प्रतिपूर्ति के लिये इन के लिए पीला कार्ड बना दिया। ये पीला कार्ड इन के लिये सिर्फ़ एक दस्तावेज़ बनकर रह गया है। अगर इस कार्ड से इन्हें कभी राशन मिलता भी है तो वह इन के स्वास्थ्य को बद से बद्द्तर बनने वाला होता है। जिस के पास दो जून की रोटी न हो उन के यहाँ शौचालय की अपेक्षा करना किसी चुटकुले से कम नहीं।
ग़रीबी की मार झेल रहे परिवारों के बच्चों को शिक्षित करना, सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाओं के लिये फंड निकलने का एक ज़रिया तो हो सकता है , लेकिन यथार्थ में यह बेमानी है। बालश्रम को समाप्त करने के लिए कानून बना, आंदोलन हुए पर निष्कर्ष...! आज आला -अफ़सरों के यहाँ काम करने वाले ज्यादातर बच्चे ही हैं। इन अफ़सरों के यहाँ का बचा और बासी खाना ही इन के यहाँ काम करने वाले बच्चों का पेट भरता है। ये परिस्थितियां ही हैं जो इन बच्चों को शारीरिक शोषण जैसे कृत्य के बाद भी मौन रखतीं हैं। स्कूलों में मध्यान्ह भोजन में बच्चों को क्या और किस गुणवत्ता का तथा कितना मिलता है ? यह सिर्फ़ और सिर्फ़ कागज़ी घोडे हैं जो सरकार को रेस जितने में लगे हैं । आंगनबाडी में बच्चों के लिये आनेवाला पोषाहार पशुओं को खिलाया जा रह है। ग्रामीण क्षेत्रों में जाति व्यवस्था का अज़गर अभी भी गरीब और दलितों पर घात लगाए बैठा है।
हमारी सरकार और उसके हुकुमरान पांच सितारा होटलों के वातानुकूलित कमरों में बैठ कर ग़रीब बच्चों की स्तिथि पर चर्चा करते हैं। मिनिरल वाटर पीते हुए सोचते हैं कि बच्चों को स्कूलों में पीने का साफ़ पानी कैसे मुहैया कराया जाए ? बात बच्चों की मौत के अकडों पर ही करें तो कन्याभ्रूण हत्या , स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच न होने के कारण होने वाली बच्चों की मौत जैसे कई पक्षों पर भी नज़र डाली जाए।
मैंने जिस रिपोर्ट का ज़िक्र शुरुआत में किया है उस में इस बात का खुलासा भी किया गया है कि 40 फ़ीसदी लोगों के पास शौचालय की सुविधा नहीं है। शौचालय की सुविधा न होने से अक्सर बच्चे खुले मैं सौंच जाते हैं। खुले में सौच जाना डायरिया को बढ़ावा तो देता ही है साथ ही पोलियो जैसी बीमारी का मुख्य कारण भी बनता है। इस तरह के कई अन्य कारण हैं जो बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग बनाते हैं।
मै सिर्फ व्यवस्था का नकारात्मक पहलू ही नहीं देख रहा , मै बच्चों के उत्थान के लिये किए जा रहे प्रयासों से भी सहमत हूँ और उनके दूरगामी सकारात्मक परिणामों को लेकर आशान्वित हूँ , लेकिन सच तो सचही है न...!

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