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शनिवार, 12 जनवरी 2008

मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?

बाबा नागार्जुन एक ऐसे जनकवि थे जो आम आदमीं कि पीड़ा को खुद महसूस तो करते ही थे साथ ही उसे भोगते भी थे यही कारण है कि उनकी कविताओं में आम आदमी की पीड़ा सजीव दिखती है... प्रस्तुत है बाबा की एक दुर्लभ कविता मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
बजरंगी हूँ नहीं कि निज उर चीर तुम्हें दरसाऊँ !
रस-वस का लवलेश नहीं है, नाहक ही क्यों तरसाऊँ ?
सूख गया है हिया किसी को किस प्रकार सरसाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
नभ के तारे तोड़ किस तरह मैं महराब बनाऊँ ?
कैसे हाकिम और हकूमत की मै खैर मनाऊँ ?
अलंकार के चमत्कार मै किस प्रकार दिखलाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
गज की जैसी चाल , हरिन के नैन कहाँ से लाऊँ ?
बौर चूसती कोयल की मै बैन कहाँ से लाऊँ ?
झड़े जा रहे बाल , किस तरह जुल्फें मै दिखलाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
कहो कि कैसे झूठ बोलना सीखूँ और सिखलाऊँ ?
कहो कि अच्छा - ही - अच्छा सब कुछ कैसे दिखलाऊँ ?
कहो कि कैसे सरकंडे से स्वर्ण - किरण लिख लाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?
कहो शंख के बदले कैसे घोंघा फूंक बजाऊँ ?
महंगा कपड़ा, कैसे मैं प्रियदर्शन साज सजाऊँ ?
बड़े - बड़े निर्लज्ज बन गए, मै क्यों आज लजाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
लखनऊ - दिल्ली जा - जा मै भी कहो कोच गरमाऊँ ?
गोल - मोल बातों से मै भी पब्लिक को भरमाऊँ ?
भूलूं क्या पिछली परतिज्ञा , उलटी गंग बहाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?
चाँदी का हल , फार सोने का कैसे मैं जुतवाऊँ ?
इन होठों मे लोगों से कैसे रबड़ी पुतवाऊँ ?
घाघों से ही मै भी क्या अपनी कीमत कुतवाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
फूंक मारकर कागज़ पर मैं कैसे पेड़ उगाऊँ ?
पवन - पंख पर चढ़कर कैसे दरस - परस दे जाऊँ ?
किस प्रकार दिन - रैन राम धुन की ही बीन बजाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?
दर्द बड़ा गहरा किस - किससे दिल का हाल बताऊँ ?
एक की न, दस की न , बीस की , सब की खैर मनाऊँ ?
देस - दसा कह - सुनकर ही दुःख बाँटू और बटाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?
बकने दो , बकते हैं जो , उन को क्या मैं समझाऊँ ?
नहीं असंभव जो मैं उनकी समझ में कुछ न आऊँ ?
सिर के बल चलनेवालों को मैं क्या चाल सुझाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
जुल्मों के जो मैल निकाले , उनको शीश झुकाऊँ ?
जो खोजी गहरे भावों के , बलि - बलि उन पे जाऊँ !
मै बुद्धू , किस भांति किसी से बाजी बदूँ - बदाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?
पंडित की मैं पूंछ , आज - कल कबित - कुठार कहाऊँ !
जालिम जोकों की जमात पर कस - कस लात जमाऊँ !
चिंतक चतुर चाचा लोगों को जा - जा निकट चिढाऊँ !
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?

1 टिप्पणी:

डा० अमर कुमार ने कहा…

मन प्रसन्न हो गया, मित्र !
भविष्य में भी अच्छे साहित्य की सुध दिलाते रहेंगे ।