इतिहास से आदमी को अलग नहीं किया जा सकता.इतिहास का काम नायक खलनायक तय करना नहीं। इतिहास अतीत की पुनर्रचना है. देश और दुनिया में शिक्षकों का पतन हो रहा है
मनुष्य एक सांस्कृतिक और एतिहासिक प्राणी है। यह अपने आत्मगत अनुभव के साथ वस्तुगत नतीजे निकालता है और इतिहास का बोध करता है , यह मनुष्य की नैसर्गिक प्रवृत्ति है . मनुष्य इतिहास में जनमता है और इतिहास रचते हुए इतिहास बन जाता है. इतिहास भले ही प्राकृतिक विज्ञान नहीं है , लेकिन इतिहास से आदमी को अलग नहीं किया जा सकता . मनुष्य वर्तमान से अतीत पर नज़र डालता है . इतिहास का नायक और कारक शक्ति मनुष्य ही है अतः इतिहास देश का नहीं मानव का होता है .इतिहास का विषय मानव समाज है वहीं दूसरी और इतिहास का काम नायक खलनायक तय करना नहीं है यह तो साहित्य का विषय है.
आज मनुष्य का बौद्धिक विकास बहुत हो गया है। वह नित नए क्षेत्रों में प्रयोग कर रहा है. विज्ञान भी उन्ही में से एक है, लेकिन इतिहास विज्ञान की तरह तटस्थ नहीं हो सकता. इतिहास तो अतीत की पुनर्रचना है. हमारे देश में इतिहास अध्ययन की समस्या है पाठ्यक्रमों में इतिहास को गलत ढंग से प्रस्तुत कर पढ़ाया जाता रहा है जो अभी भी जारी है। इतिहास के बहाने किसीको नायक तो किसी को ख़लनायक बनाने वाले लोग ग़लत तथ्यों पर ज़ोर देते रहे हैं. यही कारण हैकि ओरंगजेब का चरित्र आज भी विवादास्पद है. इतिहास में प्राचीन काल और मध्यकाल जैसे विभाजन कृत्रिम हैं . भारत में आज भी पाषाण काल जारी है . यहाँ देश विभाजन और काल विभाजन ग़लत है . इतिहास के शिक्षकों का काम इतिहास बोध कराना है, जब कि देश और दुनिया में शिक्षकों का पतन उज़ागर रूप से हो रहा है फलस्वरूप अधिकांश विषयों को नष्ट करने का काम शिक्षक ही कर रहे हैं.
(इतिहासविद् प्रो. लालबहादुर वर्मा से आशेन्द्र की बातचीत पर आधारित )
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4 घंटे पहले
2 टिप्पणियां:
बडी देर कर दी मालिक्।
जल्दी ही हमकलम पर चेपुंगा इसे
ashendra ji lambe samay bad aap se es tarah mulaqat hui aap acchha kam kar rahe hain main prabhavit hua .pratyaksh bhent hogi to batiyayenge
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