अपनीबात... के बारे में अपने सुझाव इस ई - मेल आई डी पर भेजें singh.ashendra@gmail.com या 94257 82254 पर SMS करें

गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

हमाए भिंड में तो इत्ता सा रस अठन्नी में मिलता था...

आज सुबह जब सो कर उठा तो बाहर से एक गाड़ी की तेज आवाज आई... यह आवाज ट्रेक्टर जैसी थी। (इस गाड़ी को स्थानीय भाषा में जुगाड़ कहा जाता है, यह पूरी गाड़ी एक जुगाड़ की तकनीक से ही बनाई जाती है इसे चलाने के लिए न कोई लाइसेंस लेना होता है और न हीं इसका कोई रजिस्ट्रेशन होता है) इस पर गन्ने का रस बिक रहा था। सोकर उठा था, लेकिन आज मन किया कि पहले पानी न पीते हुए गन्ने का रस पिया जाए। पत्नी से कहा कि जाओ और एक गिलास गन्ने का रस इससे ले आओ। पत्नी अंदर आई और बोली कि ये लो रस और 10 का खुला नोट दो ... इतना सा रस 10 रुपए का ...!!! मैंने आश्चर्य व्यक्त किया... खैर 10 रुपए तो दे दिए पर यह 10 रुपए इतने से रस के अखर गए वह भी बिना नीबू और काला नमक का रस। पुराने दिन याद आ गए । हमाए भिंड में तो इत्ता सा रस अठन्नी में मिलता था...। मैं मूलत: भिंड का रहने वाला है। राज टॉकीज यहां की फेमस टॉकीज है। इसी के बगल में एक दुकान थी गन्ने के रस की । स्कूल से आते - जाते इस दुकान पर निगाहें जाती थीं । स्कूल से लौटते समय इस पर अक्सर रस पीता ही था... जैसे ही दुकान पर पहुंचो ... दुकानदार खुश हो कर मशीन में गन्ने पेरने लगता और चर्र.. चर्र.. की आवाज के साथ 10 मिनट में गन्ने का रस हाजिर वो भी भरपूर नीबू, पोदीना और काले नमक प्लस बर्फ के साथ...। हाफ पैंट और हाफ शर्ट पहने अपन बस्ते को उतारते और पूरा रस पेट के अंदर फिर ऊपर से एक गिलास ठंड पानी भी .. और अठन्नी थमा देते । बड़ा गिलास कभी पीते ही नहीं थे क्यों कि मन में एक धारणा थी कि बड़ा गिलास भरके रस तो बड़े आदमी पीते हैं। पर अब ताे हमारे भिंड भी बदल गया होगा... इतने सालों में जब गन्ने के रस की कीमत 20 गुना बढ़ गई है तो हमारा भिंड कितना बदला होगा...।   


शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

लखवी को जमानत देने के मायने

लखवी को जमानत मिलने का मतलब है कि पेशावर बाल संहार के दोषियों को उनके पेरेंट्स ने माफ कर दिया है। क्या यह संभव है अगर नहीं तो  क्या इसे यह समझा जाना चाहिए कि यह दुनियां के लिए एक संदेश है कि हमारी धरती पर कुछ भी हो आतंकवाद को लेकर हम अपना रवैया नहीं बदलेंगे। मासूमों के खून से सनी किताबें चीख - चीख कर कह रही हैं कि यह पन्ने तो सिर्फ पेटिंग बनाने के लिए हैं इन पर खून से यह अबूझ इबारत क्यों लिख डाली।

मंगलवार, 15 मई 2012


शनिवार, 10 सितंबर 2011

कारवाँ गुज़र गया

गोपालदास नीरज

स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़ेखड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पातपात झर गये कि शाख़शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क बन गए,
छंद हो दफन गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँधुआँ पहन गये,
और हम झुकेझुके,
मोड़ पर रुकेरुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

क्या शबाब था कि फूलफूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा,
इस तरफ ज़मीन उठी तो आसमान उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कलीकली कि घुट गयी गलीगली,
और हम लुटेलुटे,
वक्त से पिटेपिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखरबिखर,
और हम डरेडरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

माँग भर चली कि एक, जब नई नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरनचरन,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयननयन,
पर तभी ज़हर भरी,
गाज एक वह गिरी,
पुँछ गया सिंदूर तारतार हुई चूनरी,
और हम अजानसे,
दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

बुधवार, 7 सितंबर 2011

माया बहन जी

माया बहन जी की सेंडिल लेने विमान मुंबई जाता है. उधर जब बात नोटों की माला पहनने की आती है तो माया मैडम का जिक्र जरूर आता है. जब जिन्दा सुप्रीमो की मूर्ती बनवाने की बात होती है तब भी माया मैडम. माया की माया कौन जान सकता है, बहन जी आप से एक निवेदन है की इस बार जब भी आप अपना विमान मुंबई भेजें हमारे मठ्ल्लू को जरुर भेज दें उसे बिपासा जी को देखने का बहुत मन है. सुखिया इस के लिए आपकी आभारी रहेगी. आप इन मीडिया वालों से मत डरा करो इनकी तो आदत हो गयी है लोगों के कपडे उतारने की. जय हो.

रविवार, 4 सितंबर 2011

मेरे गुरु प्रभाकर जी

मुझे मेरे सही गुरु से पहला साक्षात्कार बी ए के दौरान हुआ. एमए करते - करते उनका पूरा आशीर्वाद मेरे साथ रहा. डॉ. ओम प्रभाकर देश के जाने माने साहित्यकार तो है ही साथ ही मुझे एक गुरु के रूप में उनका सानिध्य भी मिला यह मेरा सौभाग्य रहा. गुरु जी मै फ़िलहाल आपके सम्पर्क में नहीं हूँ , लेकिन आप जहां भी रहें हजारों साल जियें एक शिष्य के रूप में ईश्वर से मेरी यही कामना है.