बड़ी छोटी उम्र में सौंदर्यबोध हो गया था। कोर्स के अलावा सबकुछ पढने -लिखने का शगल था। बीए कर रहा था उन्ही दिनों हिन्दुस्तान पटना (2 जनवरी 1997) के अंक में रमेश ऋतंभरा की कविता पढ़ी । मन को छूने वाली थी। कविता यहाँ प्रस्तुत है -
एक प्यार ही तो
एक दिन में पुरानी पढ़ जाती है दुनिया
एक दिन में उतर जाता है रंग
एक दिन में मुरझा जाते हैं फूल
एक दिन में भूल जाता है दुःख
बस ,
एक प्यार ही तो है
जो रह जाता है बरसों - बरस याद दोस्तों
2 टिप्पणियां:
एक दिन में पुरानी पड जाती है दुनिया .सत्य कहा.
बढिया रचना प्रेषित की है।आभार।
एक टिप्पणी भेजें