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गुरुवार, 31 जनवरी 2008

CAREER IN EVERYBODY LIFE


Career, it’s a common word to hear but too essential to survive our life. Career is that way which encourage us to accomplice our ambition. People use different kind of career to make their life stable and everybody wants to stick in one static land of career. It’s a very valuable for a person’s life.
Life is inconsiderable beyond of careers; we struggle from our life to make its luxurious. All Youngsters choose different sorts of professional field to lead themselves in various way of virtues. As it’s very important similarly very tuff to reach on that’s ultimate position. We always keep trying and run from pillar to post only to achieve our goal in this path. It’s a professional and competition market and we have to compete and fight one another to create own space.
Career is a very vital in everyone’s life because it is the prior ladder of utmost glory and gives expectation for living life. Without it life is white elephant foremost we must concentrate in one particular subject and know the conscience of careers which should be suitable and deserve for us where we can proceed our life with prosperity and willingly.
(हिंदी ब्लोग पर अंग्रेजी की पोस्टिंग देख कर शायद आप भी हैरान होंगे , लेकिन हमने कहा ना कि ये आपका अपना मंच है जहाँ आप अंग्रेजी क्या हिंगलिश में भी अपनी बात कह सकते हैं . पूजा कोलकाता में रहने वाली पत्रकारिता स्नातक की छात्रा हैं और उन्होने अपनी पोस्टिंग हमें भेजी है आप भी अपनी टिपण्णी दे कर इनका उत्साहवर्धन करें यही अनुरोध है. )

गुरुवार, 17 जनवरी 2008

असमानता का दंश झेलती महिलाएं

-आशेन्द्र सिंह
हमारे गाँव में एक लड़की थी सोमातिया। जब भी उसे इस नाम से पुकारा जाता मेरे मन में एक प्रश्न चिन्ह लग जाता कि भला ये भी कोई नाम है ? बहुत सालों बाद पता चला कि उसका असली नाम सोमता है , लेकिन ( तथाकथित रूप से ) निम्न जाति का होने के कारण सभी लोग ( सोमता के घर वाले भी ) उसे सोमातिया कहकर ही बुलाते हैं .
कहने के लिये तो यह कहा जाता है कि बच्चों की पहली पाठशाला उनका घर होती है। मै भी यही मानता हूँ और लिंग आधारित असमानता का पाठ यहीं से शुरू हो जाता है. इसमें सर्वाधिक मार लड़कियों को ही झेलनी पड़ती है.ये मार भ्रूण से लेकर जन्म-जिन्दगी और अन्तिम साँस तक तो चलती ही है, मरने के बाद भी परिलक्षित होती है.
पिछले लगभग दो दशक से लड़कियों की संख्या ( लड़कों के मुकाबले ) में आरही गिरावट ने कन्या भ्रूण हत्या जैसे कृत्य के खिलाफ कानून बनाने के लिए विवश किया . इस के लिये जन - जागरूकता अभियान भी चल रहे हैं . लड़के के जन्म पर कांसे ( एक धातु ) की थाली बजे या मिठाई बटे , लेकिन लड़की का जन्म मातमी माहौल पैदा कर देता है .घर में लड़के के मुकाबले लड़की को न तो उचित खानपान व परवरिश मिलती है और न ही स्वास्थ्य व शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएँ. समाज की इसी भेदभाव पूर्ण मानसिकता नें कन्याशाला जैसी संस्थाओं को जन्म दिया है . गरीबी महिलाओं की सबसे बड़ी दुश्मन है. गरीबी का दंश महिलाओं को जन्म से लेकर मौत तक शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है. गरीबी लड़कियों को अशिक्षा व भेदभाव का शिकार बनाने में मुख्य भूमिका अदा करती है . लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव के चलते उनकी शादी बहुत कम उम्र में कर दी जाती है और गरीबी तथा जातिआधारित भेदभाव ' गरीब की लुगाई - सारे गाँव की भौजाई ' का कारण बनता है . ये सभी कारण लड़कियों को घरेलू और सामजिक हिंसा का शिकार तो बनाते ही हैं साथ ही शारीरिक शोषण व उत्पीड़न की मार भी इन्हें झेलनी पड़ती है.संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ( यूनिसेफ ) की 2007 की सालाना रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन के निष्कर्षों का हवाला देते हुए बताया है कि ' महिलाएं और लड़कियाँ अक्सर घर के भीतर और बाहर शारीरिक और यौन हिंसा या जोर - जबर्दस्ती का शिकार होतीं हैं. 15 से 71 प्रतिशत महिलाएं अपने करीबी साथी से शारीरिक या यौन हिंसा की मार झेलती हैं . महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा में घरेलू हिंसा सबसे अधिक प्रचलित है ' रिपोर्ट कहती है ' दुनिया में 21 प्रतिशत बच्चे यौन अत्याचार की मार झेलते हैं। जिसमें लड़कियां ज्यादा रहतीं हैं ' लोकतांत्रिक व्यवस्था में महिलाओं को रिजर्वेशन के तहत स्थान तो मिलने लगा है , लेकिन उन्हें महज़ 'रबर स्टाम्प ' के रूप में इस्तेमाल किया जाता है . सरपंच से लेकर जिला स्तर तक के निर्वाचित पदों में यह स्तिथि सर्वाधिक ख़राब है. महिलाओं को निर्णय लेने का अधिकार न घर में रहता है न बाहर . कार्यस्थलों पर महिला यौन उत्पीड़न आज दुनिया भर के लिए एक जटिल व चिंतनीय समस्या बन गई है. ग्रामीण व शहरी दोनों ही क्षेत्रों में महिलाओं को मिलने वाली मजदूरी में भी असमानता देखने को मिलती है. जिस काम के लिये पुरुषों को 70 रूपए मिलते हैं उसी काम की मजदूरी महिलाओं को 50 या 60 रूपए दी जाती है . इस के अतिरिक्त कष्टप्रद व मेहनत वाला काम महिलाओं के हिस्से में ही रहता है . उदाहरण के लिये पानी से भरे खेतों में झुक कर धान की पौध रोपने का काम ज्यादातर महिलायें ही करतीं हैं . मैनें हिन्दू धर्म के कई चालीसा व कई शास्त्र देखे हैं सभी में पुत्र प्राप्ति की कामना व आराधना का उल्लेख मिलता है . इतनां ही नहीं राजस्थान में मैनें देखा है कि पुरुषों का म्रत्युभोज 13 वें दिन होता है जबकि महिला का 12 वें दिन. अर्थात जन्म से म्रत्यु के बाद तक वही भेदभाव... घर में चौका - चूल्हे से लेकर खेती - किसानी व अन्य कार्यों में महिला एक कुशल गृहणी के साथ - साथ प्रबंधक की भूमिका अदा करती है. आइये हम सब लिंग आधारित मानसिकता को समाप्त कर महिलाओं को समान अधिकार व समानता का दर्जा दें !

शनिवार, 12 जनवरी 2008

मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?

बाबा नागार्जुन एक ऐसे जनकवि थे जो आम आदमीं कि पीड़ा को खुद महसूस तो करते ही थे साथ ही उसे भोगते भी थे यही कारण है कि उनकी कविताओं में आम आदमी की पीड़ा सजीव दिखती है... प्रस्तुत है बाबा की एक दुर्लभ कविता मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
बजरंगी हूँ नहीं कि निज उर चीर तुम्हें दरसाऊँ !
रस-वस का लवलेश नहीं है, नाहक ही क्यों तरसाऊँ ?
सूख गया है हिया किसी को किस प्रकार सरसाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
नभ के तारे तोड़ किस तरह मैं महराब बनाऊँ ?
कैसे हाकिम और हकूमत की मै खैर मनाऊँ ?
अलंकार के चमत्कार मै किस प्रकार दिखलाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
गज की जैसी चाल , हरिन के नैन कहाँ से लाऊँ ?
बौर चूसती कोयल की मै बैन कहाँ से लाऊँ ?
झड़े जा रहे बाल , किस तरह जुल्फें मै दिखलाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
कहो कि कैसे झूठ बोलना सीखूँ और सिखलाऊँ ?
कहो कि अच्छा - ही - अच्छा सब कुछ कैसे दिखलाऊँ ?
कहो कि कैसे सरकंडे से स्वर्ण - किरण लिख लाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?
कहो शंख के बदले कैसे घोंघा फूंक बजाऊँ ?
महंगा कपड़ा, कैसे मैं प्रियदर्शन साज सजाऊँ ?
बड़े - बड़े निर्लज्ज बन गए, मै क्यों आज लजाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
लखनऊ - दिल्ली जा - जा मै भी कहो कोच गरमाऊँ ?
गोल - मोल बातों से मै भी पब्लिक को भरमाऊँ ?
भूलूं क्या पिछली परतिज्ञा , उलटी गंग बहाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?
चाँदी का हल , फार सोने का कैसे मैं जुतवाऊँ ?
इन होठों मे लोगों से कैसे रबड़ी पुतवाऊँ ?
घाघों से ही मै भी क्या अपनी कीमत कुतवाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
फूंक मारकर कागज़ पर मैं कैसे पेड़ उगाऊँ ?
पवन - पंख पर चढ़कर कैसे दरस - परस दे जाऊँ ?
किस प्रकार दिन - रैन राम धुन की ही बीन बजाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?
दर्द बड़ा गहरा किस - किससे दिल का हाल बताऊँ ?
एक की न, दस की न , बीस की , सब की खैर मनाऊँ ?
देस - दसा कह - सुनकर ही दुःख बाँटू और बटाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?
बकने दो , बकते हैं जो , उन को क्या मैं समझाऊँ ?
नहीं असंभव जो मैं उनकी समझ में कुछ न आऊँ ?
सिर के बल चलनेवालों को मैं क्या चाल सुझाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
जुल्मों के जो मैल निकाले , उनको शीश झुकाऊँ ?
जो खोजी गहरे भावों के , बलि - बलि उन पे जाऊँ !
मै बुद्धू , किस भांति किसी से बाजी बदूँ - बदाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?
पंडित की मैं पूंछ , आज - कल कबित - कुठार कहाऊँ !
जालिम जोकों की जमात पर कस - कस लात जमाऊँ !
चिंतक चतुर चाचा लोगों को जा - जा निकट चिढाऊँ !
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?

बुधवार, 9 जनवरी 2008

बालपत्रकार बनना हुआ आसान

पत्रकार बनना जिन नौनिहालों के लिये एक सपना है तो अब ये सपना साकार हो सकता है, इस के लिये न तो आपको किसी महानगर में जाना पड़ेगा और नाही बहुत रूपए खर्च करने पड़ेंगे. भोपाल में यूनिसेफ के संचार अधिकारी श्री अनिल गुलाटी की पहल पर दलित संघ, सोहागपुर के सहयोग से " बच्चों की पहल " नाम से अख़बार शुरू किया गया है.बच्चों की मुस्कान की कीमत वाले इस अख़बार में संवाददाता के रूप में सुदूर गावों में रह रहे बच्चे ही कार्यरत हैं. उधर रायपुर में मायाराम सुरजन फौन्देशन के सहयोग से "बालस्वराज्य " नामक अखबार शुरू किया है.देश की राजधानी दिल्ली से ये मुहिम प्लान इन्टरनेशनल के सहयोग से ग्रासरूट मीडिया चला रही है. चिल्ड्रन प्रेस सर्विस बुलेटिन निकाल कर. इस बुलेटिन में दिल्ली, उत्तरप्रदेश, उडीसा, उत्तरांचल और राजस्थान के बच्चे लिखते हैं. ये बुलेटिन देश भर के हिंदी अख़बारों और पत्रिकाओं में छपता है. इसे www.childrenpress.org पर भी देखा जा सकता है. अगर आप के पास भी है इसी कोई खबर तो हमें भेज दीजियेगा.